किसका विरोध?
अंग्रेजी में शपथ लेने वालो से परेशानी नहीं, लेकिन भारत को एक सूत्र में पिरोती हिंदी में किसी ने शपथ ली तो उसको थप्पड़ मार दिया। वो भी कहाँ ... विधानसभा में। मौजूद सभी ने ध्रतराष्ट्र की भूमिका का निर्वाह किया और दू:शासनों ने राष्ट्रभाषा का चीरहरण करने में कोई कसार नहीं छोड़ी। विधानसभाओं में मारपीट नई बात नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा में अबू आज़मी को बेइज्ज़त किया गया, वो दर्शाता हैं कि विरोध आज़मी का नहीं, बल्कि हिंदी का था। सवाल और भी हैं। क्या अपनी भाषा में बोलने का अधिकार महाराष्ट्र में छीन लिया गया हैं? कुछ एक उग्रवादी प्रवृत्ति वालो के चलते अब हिंदी बोलने का मतलब महाराष्ट्र और मराठी भाषा का अपमान मन जाएगा? जिस नए महाराष्ट्र के निर्माण का ख़म मनसे भर रही हैं, क्या उसकी प्राचीरें हिंदी कि 'चिता' पर कड़ी की जाएंगी? विरोध किसका हैं...हिंदी बोलने वाले का, या फिर राष्ट्रभाषा हिंदी का?
अंग्रेजी में शपथ लेने वालो से परेशानी नहीं, लेकिन भारत को एक सूत्र में पिरोती हिंदी में किसी ने शपथ ली तो उसको थप्पड़ मार दिया। वो भी कहाँ ... विधानसभा में। मौजूद सभी ने ध्रतराष्ट्र की भूमिका का निर्वाह किया और दू:शासनों ने राष्ट्रभाषा का चीरहरण करने में कोई कसार नहीं छोड़ी। विधानसभाओं में मारपीट नई बात नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा में अबू आज़मी को बेइज्ज़त किया गया, वो दर्शाता हैं कि विरोध आज़मी का नहीं, बल्कि हिंदी का था। सवाल और भी हैं। क्या अपनी भाषा में बोलने का अधिकार महाराष्ट्र में छीन लिया गया हैं? कुछ एक उग्रवादी प्रवृत्ति वालो के चलते अब हिंदी बोलने का मतलब महाराष्ट्र और मराठी भाषा का अपमान मन जाएगा? जिस नए महाराष्ट्र के निर्माण का ख़म मनसे भर रही हैं, क्या उसकी प्राचीरें हिंदी कि 'चिता' पर कड़ी की जाएंगी? विरोध किसका हैं...हिंदी बोलने वाले का, या फिर राष्ट्रभाषा हिंदी का?
ताक पर संविधान
संविधान की 16वीं अनुसूची के अनुसार किसी भी भाषा में कोई भी व्यक्ति शपथ लेने के लिए आज़ाद हैं। लेकिन विधानसभा में 13 विधायको को लेकर पहुंचे मनसे मुखिया राज ठाकरे ने पहले ही जाहिर कर दिया था कि शपथ केवल मराठी में ही ली जाएगी। अबू आज़मी ने 'नाफ़रमानी' कर दी और नतीजा पूरे देश ने देखा। इस सीनाजोरी, छिना-झपटी, मारपीट से मनसे क्या सन्देश देना चाहती हैं? ये भी साफ़ हैं और स्पष्ट ये भी हैं कि संविधान की मर्यादा और देशप्रेम की भावना से ज्यादा महत्त्व मतलब और क्षेत्रीयता की राजनीती को मिल रहा हैं।
आगे क्या होगा?
क्षेत्रवाद की जो तस्वीर महाराष्ट्र में पेश की गई हैं. उसके नतीजे क्या होंगे, ये मुश्किल सवाल नहीं हैं। देश के आतंरिक विखंडन की आधारशिला को मजबूत करने वाली इन घटनाओं के चलते विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश लड़खड़ा सकता हैं। 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' तो पाषण कालीन परंपरा थी। इसे लोकतांत्रिक वातावरण में प्रश्रय क्यों दिया जा रहा हैं। भस्मासुरों की ये प्रवत्तियां देश की आत्मा में समाई अनेकता में एकता की जड़ो को खोखला करने में कसार बाकी नहीं रखेंगी। एक राज्य में उत्तर भारतीयों के भय के साए में रहना पड़ रहा हैं। भय का जहर दूसरो में नहीं फैलेगा, इसका दावा कैसे किया जा सकता हैं?
इजाजत कौन देगा?
महाराष्ट्र में अभिव्यक्ति का अधिकार कौन देगा? सवाल उठना लाजमी हैं। फिल्मो के प्रदर्शन पर भयवश रोक लगा दी जाती हैं, माफ़ीनामे के बाद जैसे-तैसे गाड़ी खिंचती हैं। स्वतंत्र देश के संविधान में तमाम मौलिक अधिकारों के बावजूद में चलने-फिरने, सांस लेने और बोलने के लिए 13 विधायको वाली मनसे से इजाजत लेनी होगी? सत्ता, शासन व प्रशासन भी इसे मूक सहमती देगा, केवल इसलिए कि 'किंग मेकर' खुश रहे।
कब सबक लेंगे?
परेशानी की बात ये हैं कि हमें भूलने की आदत हैं। कश्मीर और पंजाब के जख्मो पर आज भी मरहम की आवश्यकता पड़ती हैं। भूल गए हैं इसलिए नेजो पर धार दी जा रही हैं और शारीर के दुसरे हिस्से पर ज़ख्म दिए जा रहे हैं। हिंदी की विशेषता उसकी ग्राहता में हैं। किसी भी दूसरी भाषा से ज्यादा लोग इसे समझते-बोलते हैं। महाराष्ट्र में ही हिंदी भाषियों की तादाद कम नहीं हैं। नागपुर, नासिक या पूना के लोग मराठी और हिंदी पर समान अधिकार रखते हैं। सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर भी हिंदी बोलने में माहिर हैं। फिर इस राजनीती का मुद्दा क्यों बनाया जा रहा हैं। एक इसे ख़त्म कने के नाम पर 'नाम' कमा रहा हैं, तो दूसरा इसे बचाने की कोशिश का दम ठोंक रहा हैं। पंजाब में भिंडारवाले, असं में उल्फा और जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों को ठंडा हुए ज्यादा अरसा तो गुजरा नहीं हैं फिर इतनी जल्दी हम कैसे भूल रहे हैं?
राजू-अबू : पुराणी हैं दुश्मनी
शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे के मुताबिक मामला पहले से तय था। राज ने फरमान जारी किया था और अबू को नाफ़रमानी करनी ही थी। नुक्सान कोई नहीं था अलबत्ता फायदा दोनों को पहुंचना था। राज और अबू के बीच की लड़ाई कोई नई नहीं हैं। पिछले साल राज ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ अभियान शुरू किया और मराठी मानुष का नारा बुलंद किया। आगजनी, तोड़फोड़, मारपीट के बाद सैकड़ो की तादाद में उत्तर भारतीयों को जमीन तलाशनी पड़ी। उत्तर भारतीयों के 'तारहरण' बनने की कोशिश में अबू आज़मी ने कहा कि वो मनसे कार्यकर्ताओं से लोगो को बचाने के लिए लाठिया बाटेंगे। अगर अबू आज़मी ने बाल ठाकरे के खिलाफ कोई भी बयान दिया तो हम उन्हें मुंबई छोड़ने पर मजबूर कर देंगे। ठाकरे लाखो लोगो के लिए भगवान् हैं और उनके खिलाफ एक भी शब्द बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बाल नंदगाओकर, मनसे लीडर
समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी को विधानसभा में पीटना निंदनीय हैं। ये ऐसी हरकत हैं जो मनसे के तालिबानियों की राह पर चलने का प्रतीक हैं। तालिबानी और चरमपंथी ऐसा करते हैं। कल्याण सिंह, निर्दलीय विधायक, एटा
आज़मी और उसके जैसी हरकत करने वालो को शिवसेना के सिंकी तंदूरी बना देंगे। अगर किसी ने भी मराठी अस्मिता से खिलवाड़ किया तो उसका भी वही हश्र होगा।
बाल ठाकरे, शिवसेना प्रमुख
यह बेहद शर्मनाक हैं, इसकी जितनी निंदा की जाए कम हैं। इससे देश बंट जाएगा। प्रधानमंत्री को इस मामले पर सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।
लालू प्रसाद यादव, राजद प्रमुख
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा हैं। देश के हर नागरिक का कर्त्तव्य हैं कि इसके सम्मान की हर हाल रक्षा करे। राज ठाकरे देश को बांटने की राजनीती कर रहे हैं और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। मुलायम सिंह यादव, सपा अध्यक्ष
सिर्फ विधायको का निलंबन इलाज नहीं हैं। एम.एन.एस. जैसे पार्टियों की मान्यता रद्द होनी चाहिए और सख्त कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।
शरद यादव, जदयू अध्यक्ष
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