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बाजार में सच का सामना

सच का सामना इन दिनों एक टीवी चैनल पर आ रहा कार्यक्रम - सच का सामना,खासी चर्चा ओं में है। कई तरह के सवालों के साथ इसे नैतिकता के खिलाफ और पक्ष में बताने वाले लोगों के वर्ग खड़े हो गए हैं। मीडिया में बहसें हो रही हैं और कुछ लोग इसे रोकने के लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा रहे हैं। इस सबके बीच शायद इसकी असलियत तक पहुंचने की जरूरत और समझ गुम हुई जा रही है। सबसे पहली बात यह की मीडिया को इस सीरीयल के महिमामंडन या खालिस निदां से ऊपर उठकर आम आदमी को यह बात समझाने की कोशिश करनी चाहिए थी कि इसमें न कोई सच है न ही किसी को इसका सामना करना पड़ता है, इस पूरे झमेले में यदि कोई बात सच है तो वह है बाजार। यह बाजार का सच है या यूं कहें कि यह बाजारू होता सच है। यह सीरीयल साल २००८ में अमेरिका में प्रसारित धरावाहिक द मोमेंट आफ ट्रथ का भारतीय संस्करण है। यहां यह बात गौरतलब है कि अमेरिकी समाज की भारतीय समाज से बुनियादी तौर पर कोई समानता नहीं है। अमेरिकी समाज हमेशा से ही पूंजी ही समाज के केंद्र में रही है, यह समाज सफलता को ही सच मानता है। इस समाज का आदर्श यह कभी नहीं रहा कि क्या कहा जा रहा है, इसका आदर्श रहा है कि कौन कह रहा है। यदि सफल आदमी कोई बात कहता है तो वह भले ही दो कौड़ी की हो, उसकी कोई भी सामाजिक उपयोगिता न हो लेकिन उसे बड़े ही ध्शन से सुना जाता है। इसी प्रवृति के कारण वहां सफल लोगों की अंतरंग बातें ध्यान से सुनी जाती हैं, उनके सेक्स वीडियो टेप जारी होते हैं और ऐसे सेलेब्रिटी खुद अपनी फूहड़ और घटिया करतूतों का महिमागान करते देखे जा सकते हैं। किसी दार्शनिक ने कहा था कि अमेरिकी समाज सभ्य नहीं है। यह बर्बरता से सीधे विकसित अवस्था में आ गया है। इसके बीच की एक जरूरी सीढ़ी होती है सभ्यता जिसे वह गोल कर गया,इसलिए सभ्य समाजों के जरूरी संस्कार वहां मौजूद ही नहीं हैं। ऐसे अमेरिकी समाज के लोकप्रिय धारावाहिक का भारतीय संस्करण है सच का सामना। इसमें आने वाले सेलेब्रिटी प्रतिभागियों से पूछा जाता है शादी के पहले आपके शारीरिक संबंध थे ? शादी के बाद आपके शारीरिक संबंध रहे है ? क्या आपने कभी गर्भपात कराया है या आपने किसी महिला को अपने बच्चे का गर्भपात कराने के लिए कहा ? ऐसे ही सवालों के कारण यह सीरियल चर्चाओं में है। यह ध्यान देने वाली बात है कि इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों से कुल २२ सवाल पूछे जाते हैं, इनमें से कुछ सवाल ऐसे जरूर होते हैं जिनका संबंध सेक्स से होता है। यदि इन सवालों को कार्यक्रम से हटा दिया जाता है तो यह दूसरे कार्यक्रमों के समान ही हो जाएगा, इसीलिए इसे खास बनाने के लिए ऐसे सवाल इसमें शामिल किए गए हैं। इस सीरीयल के मुताबिक सेक्स ही सच की सबसे बड़ी कसौटी है। सेक्स से जुड़े ऐसे सवालों के जवाब जो भारतीय समाज में सहज नहीं माने जाते हैं, इस कार्यक्रम के आकर्षण की वजह हैं। उदाहरण के विनोद कांबली से उनकी पत्री की मौजूदगी में पूछा गया कि क्या उनके शादी से पहले किसी औरत से जिस्मानी ताल्लकात थे ? यह सवाल और इस पर विनोद की स्वीकारोक्ति ही ऐसी बातें हैं जिनमें इस कार्यक्रम की जान है। धड़कने बढ़ जाती हैं। यह मशीन इसी सिद्वांत पर काम करती है। लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि ऐसा तभी होता है जब जब कुछ अचानक हो। यदि कोई व्यक्ति झूठ के प्रति बेहद सहज हो जाए तो उसे पकड़ पाना इस मशीन के बस की बात नहीं होगी, कयोंकि तब उसकी धड़कने सामान्य होंगीं। यह बात इस कार्यक्रम के प्रायोजक भी जानते हैं इसीलिए वे सच के लिए इस मशीन पर निर्भर नहीं हैं। जानकारों का मानना है कि दर असल होता यह है कि जिस सेलेब्रिटी की इस कार्यक्रम में शामिल होने की सहमति मिल जाती है उसमें जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में जानकारी हासिल कर ली जाती है जो लोगों के लिए जिज्ञासा का कारण बन सकती हैं। ये जानकारियां ऐसे सेलेब्रिटी के दोस्तों, रिश्तेदारों और कभी - कभी खुद उसी से मिल जाती हैं। जाहिर है कि जो बात एक तरह से जग जाहिर हो उसे ही पर्दे पर लाने के लिए मशीन के टोटके का इस्तेमाल किया जाता है ताकि लोगों में प्रामाणिकता की छाप छोड़ी जा सके। जो लोग कार्यक्रम के प्रतिभागी होते हैं वे भी जानते हैं कि उनके बारे में जानकारियां जुटा ली गई हैं इसलिए वे मशीन के सामने भी सहज होते हैं। कभी - कभी ऐसा हो सकता है कि कोई प्रतिभागी अपनी जिंदगी की अंतरंग बातों को पर्दे पर लाए जाने से अचानक घबराए और झूठ साबित कर देगा। इसमें इस मशीन की कोई भूमिका सही अर्थों में बिल्कुल नहीं होती। मशीन का कुल इस्तेमाल दर्शकों पर धाक जमाने के लिए ही किया जाता है। कुल मिलाकर यह सीरीयल जन - भावनाओं को भुनाने की नई कोशिश है लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा हो सकता है। सेलेब्रिटी हमेशा से ही आम - आदमी के लिए रोल मॉडल रहे हैं। वे जो कहते और करते हैं उन्हें आम - आदमी अपने जीवन में उतारने की हर संभव कोशिश करता है, ऐसे में यदि उसके रोल मॉडल ही अनैतिकता और मुक्त सेक्स संबंधों की बात खुलकर करेंगे तो उनसे प्रभावित लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।


सिर्फ अनैतिकता है सच :- सवाल यह है कि जो बोला जा रहा है क्या वह सच ही है ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जो बोला जा रहा है वह बाजार के इस रूख को भांप कर ही बोला जा रहा हो कि अनैतिकता ही आकर्षण का केंद्र है तो उसे ही बोला जाए, उसे ही अपना सच बताया जाए ? मामला बड़ा सीधा सा है। अब यदि आपने चोरी नहीं कि तो आप इस बाजार में कौड़ियों के मोल भी नहीं बिकेगी। यदि आप यह कह दें कि शादी के पहले या बाद में आपका किसी से अनैतिक संबधं नहीं रहे तो आप इस बाजार के नहीं, इसके कूड़ादान में फेंके जाने वाली चीज हैं।



सच के टोटके :- इस कार्यक्रम में एक नई बात भी है जो लोगों को आर्षित कर रही है। इसमें पॉलीग्राफ मशीन इस्तेमाल किया गया है जो कार्यक्रम प्रायोजकों के मुताबिक झूठ पकड़ लेती है। इसी प्रचार के कारण आम - आदमी को इस कार्यक्रम पर बड़ा विश्रास है, कई तो ऐसे लोग हैं जो इसी कारण प्रायोजकों से ज्यादा वजनदारी से इस कार्यक्रम के सच की वकालत करते दिखाई देते हैं। लेकिन कुछ सवाल हैं जो इस मशीन और इस पूरे कार्यक्रम को मजबूत शक के दायेर में लाते हैं। पहला सवाल है मशीन की कार्यप्रणाली और क्षमता पर - ऐसा माना जाता है कि यह मशीन लाई डिटेक्टर यानी झूठ पकड़ने का काम करती है। यह सर्वमान्य बात है कि यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलता है उसके हदय की


सीरीयल का मनोविज्ञान :- यह सीरीयल दरअसल भारतीयता के दो मूल्यों को अपनी तरह से भुनाने की कोशिश है। पहला नैतिकता और दूसरा सच। ये दोनों ही बातें हजारों सालों से भारतीय समाज की बुनियाद रही हैं। यदि कोई व्यक्ति नैतिकता के मापदंड पर खरा नहीं उतरता था तो उसे सामाजिक निंदा का पात्र बनना पड़ता था। अब ऐसी बात भले ही कम होती जा रही हो लेकिन किसी व्यक्ति का नैतिकता का उल्लंघन और फिर उसका स्वीकार लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से अजीब सा सुकून देता है, क्योंकि बकौल दुष्यंत - इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं, हर कोई अनैतिकता में कहीं न कहीं से शामिल है, मात्रा में भले ही भेद हो सकता है लेकिन शामिल जरूर है। तो इस सीरीयल का पहला मकसद आदमी को यह तृप्ती प्रदान करना है कि वह अकेला अनैतिक नहीं है, दूसरे लोग भी खासकर समाज के सफल लोग भी अनैतिक हैं। लोगों में तुष्टि की यह भावना जगाने के साथ ही यह सीरीयल इसमें शामिल प्रतिभागियों के प्रति सहानुभूति और सम्मान जगाने की कोशिश भी करता है। दर्शकों को लगता है कि देखो इसने कितनी हिम्मत से आखिर सच तो बोला।



नेता क्यों नहीं :- यदि सच परख इतनी आसान है तो देश के नेताओं को इस कार्यक्रम का हिस्सा बनाने की जुगत क्यों नहीं की जाती ? इसका कारण यह लगता जरूर है कि नेता इस कार्यक्रम में आना ही नहीं चाहेंगे लेकिन ऐसा है नहीं। ऐसा न होने के पीछेसबसे कारण है प्रामाणिकता का अभाव। यदि किसी नेता को कार्यक्रम में बुलाया गया तो यह पहले से ही तय बात होगी कि वह झूठ ही बोलेगा लेकिन उसे पकड़ने के लिए न ही तथ्यात्मक रूप से कोई जानकारी होगी और न ही पॉलीग्राफ मशीन उसे पकड़ पाएगी, ऐसे में कार्यक्रम का मकसद ही धरा रह जाएगा। इसीलिए नेताओं को इसमें नहीं बुलाया जाता।

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1 Comments

  1. bahut hi sundar or sachcha aalekh
    vastvikta ko ujagar karta hua...

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