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मस्जिद मेरी टूटी, शहर तेरा क्यूं हिला

जब भोपाल की मोती मस्जिद के ग्राउंड पर कोटरी की मस्जिद के लिए जोरदार सभा हो रही थी, कोटरी गांव के लोग अकबर भाई के घर जुमे की नमाज अदा कर कामकाज पर जा चुके थे। उन्हें पता तक नहीं था कि उनके गांव की मस्जिद को लेकर भोपाल में कोई सियासी कैम्पेन शुरू हो गई है।राजधानी से 70 किमी दूर भोपाल-इंदौर राजमार्ग पर साढे आठ हजार की आबादी वाला कोटरी गांव है। मुसलमानों की आबादी करीब सवा सौ है। यहां चारलेन बनाने के लिए 29 जनवरी की रात एक मस्जिद, तीन मंदिर तोडे गए। मंदिरों का 2 लाख 44 हजार का मुआवजा मंदिर समिति को मिल गया। तय जगह पर मस्जिद भी 60 फीसदी बन गई है। चार दिन में मस्जिद पूरी बन जाएगी। अगले जुमे की नमाज यहीं होगी, ऎसा निर्माण एजेंसी का भरोसा है। नई मस्जिद राजमार्ग से पचास मीटर हटकर दो मंजिला बनाई जा रही है। यहां बेसमेंट भी बन रहा है। आठ दुकानें बनाई जा सकेंगी। बेसमेंट की छत रविवार को डाली जाएगी। बिजली कनेक्शन भी होगा। हैडपम्प लगेगा। यह सभी काम सडक बनाने वाली निजी कंपनी करवाकर दे रही है। पहले थी 80 साल पुरानी मस्जिदसडक प्राधिकरण की ओर से तोडी गई मस्जिद नवाबी दौर में मिट्टी से बनी थी। उस पर टीनशेड था। उसका क्षेत्र 1306 वर्गफुट था। नई मस्जिद 1450 वर्गफुट पर आरसीसी से बन रही है।तोडे फिर बनाए मंदिर-मस्जिदसडक बनवा रही कंपनी के सुपरवाइजर मुश्ताक अहमद मंदिर-मस्जिद विंग के प्रभारी हैं। उनके नेतृत्व में भोपाल से देवास के बीच 46 मंदिर, एक मस्जिद और 3 दरगाह तोडे या शिफ्ट किए गए। उनका कहना है कि हटाने या तोडने के एवज में नया निर्माण मेरी देखरेख में होता है। इस पर कंपनी डेढ करोड खर्च कर रही है। कंपनी के पास एक धार्मिक विंग है। वह मंदिर निर्माण के बाद प्राण-प्रतिष्ठा तक करवाकर देती है। मस्जिद-दरगाह मामले में भी हर रिवाज पूरे किए जाते हैं।हमें गांव में रहना है। मस्जिद मामले में हम कोई राजनीति नहीं चाहते। सियासत एक साल पहले करनी थी। शायद पुरानी मस्जिद बच जाती।-मो. सईद मंसूरी, सदर, मस्जिद कमेटीमस्जिद किसी पूर्वाग्रह से नहीं तोडी। विकास के लिए मंदिर, मस्जिद और दरगाह हटाए गए हैं। जुमे तक मस्जिद बनाकर दे देंगे।-अशोक कुमार पांडेय, प्रोजेक्ट मैनेजर, निजी सडक निर्माण कंपनीसौहार्द के लिए हर प्रयास किए जाने चाहिए। सियासत के लिए कोटरी के अमन को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।

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1 Comments

  1. भैया अखबार की खबर को जस का तस छाप दिया । ज़रा तो अपना भी योगदान दिया होता , आलेख पढने में मज़ा आता । वैसे भी आखिरी सात लाइनों में क्या कहना चाहा है समझ से परे है । मेरा सुझाव है लिखें लेकिन थोडी सी ज़हमत खुद भी उठाएं आलेख को बेहतर बनाने की ।

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