आदमखोर मानव कलयुग का ऐसा पाशविक रूप शायद ही पहले कभी देखने में आया हो यदि आपके घर में एक वर्ष से छोटा कोई प्यारा सा बच्चा हो तो, इन चित्रों को देखकर और क्षणभर को उस बच्चे की स्मति अपने मन - मस्तिषक पर उकेरने मात्र से निश्चित ही पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाएगी कोई भी व्यक्ति ,जिसमे थोडी भी मानवता शेष है,स्वयंका इन चित्रों में दिखाए गए व्यक्ति से घृणा करने से रोक नही सकता, पूर्व और दक्षिण चीन सागर के मध्य स्थित एक छोटा सा सा देश है ताइवान यहाँ की साक्षरता दर ९४% से भी अधिक है ताइवान के लोगो की मांसाहारी प्रवत्ति अब पाशविकता की सारी हदें पार कर चुकी है ताइवान एक पूर्ण रूप से संपन्न राष्ट्र है वहां न तो भुकमरी है नहीं गरीबी फिर समझ में नहीं आता है की किस मजबूरी वश ताइवान के लोग मानव भूणो तथा सैट आठ माह तक के अबोध बच्चों को भून कर खा रहें है लेकिन इन मासूमो के भीने शरीर पकवानों की तरेह बिकने के लिए तय्यार है शीशे के जारों मेविभिन्न ब्रांड में बिकने के लिए सजे है यह साबित होता है की एसा वे पूरी समझ -बूझ और बिना किसी मजबूरी के कर रहें है ताइवान के कई प्रमुख शहरों तेपि चुन्घो ,युन्घो तैनान तेचुंग के विभिन्न होटलों व रेस्टोरेंटो में भुने हुए भूणो व आठ माह तक के बच्चों के गोश्त की सरे आम बिकी की जा रही है इन होटलों में सजे जीरे में भुने हुए भूण व बच्चों के गोश्त के टुकड़े भी बिकी के लिए उपलब्ध है इन भूण टुकडों की बिकी अस्सी न्यू ताइवान डालर तक की जाती है ताइवान के लोगो की इस पाशविकता की झलक दुनिया भर के लोगो को दिखाई गई है वेबसाइट से पाप्त जानकारी के अनुसार इस मांस की बिकी करने वाले लोग ताइवान के आथिक रूप से कमजोर तबके पर गहरी नजर रखते है विभित्र कारणों से संतान न चाहने वाले दम्पति व पेमी युगल भी उनके सम्पके में रहते है टमिनेशन आफ पिगनेसी( गभेपात ) के जरिए भूण तथा अबोध बच्चों को गभोश्य से निकलवा दिया जाता है और फिर इनकी बिकी की जाती है पहले भूण को ही भूनकर खाया जाता था, परन्तु अब आठ माह तक के बच्चों के मांस को भी खाया जा रहा है आश्च्ये की बात तो यह है कि 3 हयूमन रॉसटटेड 4 मीट के नाम से पचलित इस मांसाहारी व्यंजन को ताइवान की लगभग दस पतिशत जनसंख्या बेइतहा पसद करती है मानव की ऐसी तमाम हरकतों को देखकर एक बडा सवाल यह भी उठता है कि क्या मानव गोष्ट भी बहुत स्वादिष्ट है ? क्योकि ऐसी घटना पूर्व में भी हो चुकी है अब से लगभग 15 वषे पूर्व जंगल में सिथत एक ढाबे पर मिलने कि घटना पकाश में आयी थी तब भी थोड़ा हो हल्ला हुआ था, परतु तब इसे एक अपवाद मान कर भूला दिया गया था परतु आज भारत में न सही ताइवान में ही,यह पाशविकता जिस रूप में उभरकर सामने आई है उस से तो यही लगता है की यदि भारत में भी मांसाहारी लोंगो को मानव मांस खाने की अनुमति मिल जाये, तो ज्यादा न सही कुछ पतिशत जनसंख्या निश्चत रूप से उस की दीवानी होगो शायद यही कारण है की जंगल के राजा शेर को भी एक बार यदि इसानी खुन दाढ़ में लग जाए तो वह आदम खोर हों जाता है और फिर उसे मार देना ही विक्ल्प रह जाता है लेकिन जब आदमी की दाढ़ में आदमी का ही खून लग जाए,तो इन आदम खोरों को मार डालने में सैकडों कानून आड़े आ जाते है पर जो भी हो कलयुग अपना रंग दिखा रहा है अभी तो मानव भूण या आठ नौ माह के मत बच्चों को ही शिकार बनाया गया है, वह दिन दूर नहीं जब इंसान को मार कर खाएगा,इंसानियत अपनी नियति पर रोएगी,और सृष्टि निमेता बम्हा सहित सभी भगवान मानव उत्पति पर पछताएगे और कोई भक पुकारेगा देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान कि कितना बदल गया इंसान अब तो जन्म ले ले भगवान