Header Ads Widget

 


Responsive Advertisement

copy-paste

सीहोर, पांच तालाब, शहर प्यासा

इसे शहर का दुर्भाग्य कहां जाए या प्रशासन की अनदेखी का नतीजा, पांच बडे तालाबों से घिरा होने के बाद भी शहर प्यासा है। दिनोंदिन इसकी प्यास बढती जा रही है, लेकिन इस प्यास को बुझाने के लिए न तो तालाबों में पानी है न ही जमीन का सीना चीर कर लगाए गए हैण्डपंपों में ही अब ज्यादा कुछ बचा है। शहर के निकट स्थित इन तालाबों में ऎसा क्या हो गया कि बूंद भर भी पानी नहीं रूक पाया या फिर लंबे समय से देखरेख के अभाव में यह तालाब अब तालाब न होकर सपाट उथले मैदानों में तब्दील हो गए हैं। इन जलाशयों के खाली रहने के कारण नगर के मध्य बहने वाली नदी सूखी हुई है, नदी और तालाबों में पानी नहीं होने से शहर के हैण्डपंप भी प्यासे पडे हैं।दम तोडने की कगार पर पहुंचे तालसीहोर शहर के सबसे निकटवर्ती जलाशय जमोनिया है, जहां अब मवेशियों के पीने लायक पानी बचा है। यह जलाशय मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर है। जमोनिया जलाशय से गर्मी के दिनों में आधा शहर पानी पीता था, लेकिन इस बार यह आसार नजर नहीं आ रहे। मुख्यालय से दूसरा निकटवर्ती बडा तालाब भगवानपुरा है जहां से किसी समय शहर को पीने का पानी सप्लाई किया जाता था, यहां भी अब इतना पानी नहीं बचा है कि गांव के मवेशी गर्मी का मौसम काट सकें। इसके बाद नंबर आता है इछावर मार्ग पर स्थित कोनाझिर का, जो आसपास के दर्जन भर गांवों की प्यास बुझाता था, लेकिन इस बार यह भी खाली हो चला है। इनके साथ ही मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर जहांगीरपुरा का जलाशय और ग्राम बिजौरी के निकट स्थित जलाशय भी अपने अंतिम दौर से गुजर रहे हैं। इतने जलाशय होने के बाद भी शहर को इनसे कोई फायदा नहीं हो रहा है। घट रही जलाशयों की जल संग्रहण शक्तिशहर के समीप स्थित सभी जलाशय किसी समय गर्मी में नगरवासियों के मनोरंजन और स्नान आदि के काम आते थे, लेकिन अब इनमें इतना पानी भी नहीं रूकता कि गर्मी का मौसम पूरी तरह से काट सकें। पानी के कम भराव का एक कारण जहां बीते दो वर्षो में कम वर्षा का होना है, वहीं जलाशयों का उथला हो जाना भी एक कारण बना है। जलाशयों में कई सालों से लगातार मिट्टी का भराव हो रहा है, जिससे यह जलाशय उथले मैदानों जैसे हो गए हैं। कागजों में खर्च होते हैं लाखों रूपएजिले भर के जलाशयों के रख-रखाव पर हर साल लाखों रूपए खर्च किए जाते हैं। कई बार मैंटेनेंस के नाम पर तो कई बार अन्य मदों में हजारों रूपए खर्च बताया जाता है, लेकिन इन जलाशयों की स्थिति को देखकर लगता नहीं कि सालों से इनके रख-रखाव पर कोई ध्यान दिया गया हो। जमोनिया जलाशय की नहरें जहां टूट-फूट चुकी हैं, तो भगवानपुरा के मुहाने हवा में झूल रहे हैं। इन जलाशयों के खाली रहने के कारण जहां आसपास के हैण्डपंप समय से पहले सूख गए हैं, तो इन पर आश्रित लोगों की मुसीबतें बढती जा रही हैं। कई जगहों पर सूखे तालाबों का उपयोग खेतों के रूप में किया जा रहा है। जलाशयों के रख-रखाव की ओर विभाग लगातार प्रयासरत रहता है। इस वर्ष अल्पवर्षा के कारण तालाबों में पानी का भराव पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाया, इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं। विभाग तालाबों के मैंटेनेंस पर पर्याप्त ध्यान दे रहा है।

Post a Comment

1 Comments

  1. सब स्थानों पर तालाबों को समाप्त कर दिया गया है। जब कि इन का विस्तार होना चाहिए था। नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप। फिर इन का पानी बिना किसी नियंत्रण के उपयोग कर लिया जाता है। मनुष्यों और जानवरों के पीने के लिए भी नहीं छोड़ा जाता। जल्द ही जल नियत्रंण की आवश्यकता है। नहीं तो सब स्थानों पर लोग आपस में युद्धरत नजर आने लगेंगे।

    ReplyDelete