जानवरों की प्यास की चिंता करने वाले प्रशासन और नगर पालिका को शहर की जनता की प्यास की चिंता किस हद तक सता रही है कहना मुश्किल है। नगर के बीचोबीच स्थित एक विद्यालय के बच्चे पिछले कई दिनों से पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हालत यह है कि स्कूल का हर बच्चा जहां घर से पानी ला रहा है तो स्कूली खर्चे के लिए पानी स्कूली बुआ दूर दराज से ला रही है।नगर के बीचों-बीच स्थित सरस्वती विद्या मंदिर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा शिशु से लेकर आठवीं तक साढे चार सौ से अघिक बच्चे पढते हैं, दो शिफ्टों में लगने वाले विद्यालय में पीने के पानी के लिए कोई इंतजाम नहीं है, नगर पालिका का नल सप्ताह में एक बार आता है, उसमें भी ऎसा पानी आता है जो बच्चों के पीने लायक नहीं होता। हफ्ते में एक बार आने वाला पानी दो दिन भी नहीं चल पाता, इस कारण बाकी के चार दिन स्कूल में पेयजल की समस्या खडी हो जाती है, दूसरी ओर शिक्षक बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उस पानी का उपयोग करने से बचते हैं। पदस्थ बुआ को या तो बडा बाजार के लक्ष्मी नारायण मंदिर जाना पडता है। स्कूल प्रबंधन ने दिया आवेदनसरस्वती विद्या मंदिर में हो रही पानी की किल्लत को देखते हुए विद्यालय की प्रधानध्यापिका मीरा चौरसिया ने क्षेत्रीय पार्षद आशीष गहलोत के माध्यम से नगरपालिका को स्कूल के सामने से निकली ट्यूबवेल की पाइप लाइन से कनेक्शन देने का निवेदन किया है, यह आवेदन बीते 19 मार्च को दिया गया है, लेकिन सात दिनों के बाद भी इस आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। दूसरी ओर दिन पर दिन सूखते जल स्रोतों के कारण स्कूल में पानी उपलब्ध कराना मुश्किल होता जा रहा है। उल्लेखनीय है कि स्कूल के पीछे स्थित एकमात्र हैण्डपंप को सूखे हुए दो महीने हो चुके हैं, इनके अलावा निकट में कोई अन्य पेयजल स्रोत भी नहीं है।