जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए, कंधे पर बस्ता होना चाहिए, आज उन मासूमों के हाथ में चाय की केटली है और कंधो परिवार के लालन-पालन का बोझ है। मासूम बच्चे मजबूरी में बाल मजदूरी का दंश झेल रहे हैं। शहर के कई होटलों और ढाबों में मासूमों को मजदूरी करते देखा जा सकता है। खास बात तो यह है कि श्रम विभाग को सब कुछ मालूम होने के बाद भी इस ओर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है। नगरीय क्षेत्र में बाल मजदूरी का कार्य बडे पैमाने पर चल रहा है।नगर के बस स्टैंड, मुख्य चौराहा, गांधी चौक, गल्ला मंडी, छीपाबड आदि स्थानों पर आठ से पंद्रह वर्ष के बच्चों को दुकानों पर काम करते देखा जा सकता है। आर्थिक तंगहाली के दौर से गुजरते गरीब परिवार के बच्चे पंद्रह-बीस रूपए प्रतिदिन की दर पर काम करने को मजबूर हैं। वहीं बाल मजदूरों से लगभग बारह घंटे काम लिया जा रहा है।बुरी लतों का हो रहे शिकारमजदूरी कर अपने परिवारों की रोजी का जरिया बने बच्चे बुरी लत का शिकार हो रहे हैं। तम्बाकू, बीडी, सिगरेट पीते इन बच्चों को देखा जा सकता है। वहीं दुकान पर मालिकों की झिडकी और अपमान भी सहन करने को बच्चे मजबूर हैं। खिरकिया की ज्यादातर दुकानों पर नाबालिग बच्चे काम कर रहे हैं। श्रम विभाग द्वारा कागजी खानापूर्ति के लिए वर्ष में एक या दो बार कार्रवाई कर तो दी जाती है, लेकिन हकीकत यह है कि मासूम बचपन अभी भी बाल मजदूरी का दंश झेल रहा है।श्रम निरीक्षकों को निर्देशित कर जिले में बाल मजदूरी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा जाएगा।
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