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बीजेपी को क्यों याद आए राम...

ग्यारह साल बाद बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में एक बार फिर राम जन्म भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा उठाया है। एनडीए के बैनर को छोड़ बीजेपी अपना घोषणापत्र लेकर आ रही है।ऐसे में ये जान लेना जरूरी है कि आखिर कब से बीजेपी के साथ जुड़ा है राममंदिर का मुद्दा और किस किस दौर से हो कर गुजरा है ये धर्म और राजनीति का जुड़ाव।1995 में बीजेपी की कार्यकारिणी में लालकृष्ण आडवाणी का ये बयान बीजेपी और राम मंदिर के मुद्दे से जुड़ाव का सच है। भारत में बीजेपी की दशा दिशा बनाने वाला यही मुद्दा है।और इस मुद्दे को लेकर ही बीजेपी ने उन्नीस सौ चौरासी की दो लोकसभाई सीटों से आगे बढ़ना शुरु किया। जनसंघ का लबादा पूरी तरह छोड़ कर। 1990 में राम मंदिर मुद्दे को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा निकाली। पूरे देश में सांप्रदायिक माहौल गरमा गया। समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया। 1996 तक बीजेपी राम मंदिर निर्माण को लेकर कुछ भी कर गुजरने का दावा करती रही। 1996 में बीजेपी की तेरह दिन की सरकार बनी तो बीजेपी को सरकार को गणित समझ में आ गया। 1998 में बीजेपी ने गठबंधन की ओर कदम बढ़ाने का मन बना लिया तो राम मंदिर पर उसका नजरिया भी बदल गया अब बीजेपी कहने लगी कि वो राम मंदिर निर्माण के लिए सभी संवैधानिक,आपसी और कानूनी कदम उठाएगी। और बीजेपी के इस बदलाव को लालकृष्ण आडवाणी हर साल गुजरात के सोमनाथ मंदिर में दोहराते भी रहे। पर 1998 में तेरह महीने की सरकार चलाने के बाद बीजेपी को राममंदिर का मुद्दा भारी लगने लगा और उसने उससे कदम पीछे खींचने शुरू कर दिए। फिर 1999 के चुनावों के पहले जब एनडीए का साझा घोषणापत्र सामने आया तो बीजेपी के परंपरागत तीनो मुद्दे राम मंदिर,धारा 370,कॉमन सिविल कोड,पीछे छूट गए इस पर बीजेपी के अपनों ने उन्हें जम कर घेरा।पर बीजेपी ने सांस नहीं ली और वो अपने साथियों के साथ इंडिया शाइनिंग का एजेंडा आगे बढ़ाती रही। अटल जी विकासपुरुष बन गए और आडवाणी लौहपुरुष राम मंदिर का मुद्दा घूम फिर कर आता रहा और बीजेपी उस पर कुछ न कुछ बयान देती रही।पर इसका बीजेपी के चुनावी समीकरणों पर असर न पड़ा। लेकिन बीजेपी के वोटबैंक पर राम मंदिर मुद्दे से पार्टी की दूरी ने असर डालना शुरू कर दिया था।पर फिर गठबंधन की मजबूरी की वजह से बीजेपी की घोषणाओं से भी दूर होने लगा था मुद्दा। राम मंदिर आंदोलन की एक और प्रमुख नेता उमा भारती ने भी नवंबर दो हजार चार में पार्टी छोड़ दी।संघ परिवार के दूसरे सदस्यों ने भी राममंदिर मुद्दे से पार्टी की दूरी को निशाना बनाना शुरू कर दिया।बीजेपी सबकुछ सहती रही पर राममंदिर मुद्दे पर कोई स्टैंड नहीं लिया। पर 2004 के लोकसभा चुनावो से पहले पार्टी ने राममंदिर के मुद्दे पर सभी पक्षों की साझा सहमति और अदालती आदेश के जरिए राममंदिर निर्माण का रास्ता निकालने की बात कही। पर सरकार चली गयी। इस बीच राम मंदिर मुद्दा केन्द्र से सरक गया।राज्यों में बीजेपी के छत्रपों का शासन। कहीं राष्ट्रीय शर्म तो कहीं विकास के मुद्दे पर आता रहा।दो हजार नौ के चुनावों से पहले राम मंदिर के मुद्दे पर पार्टी ने फिर स्टैंड बदला और अब वो राममंदिर निर्माण पर सभी विकल्प खुले रखने और कानून बनाने की बात कह रही है।वैसे राम मंदिर से दूरी और नजदीकी के बरक्श बीजेपी का चुनावी प्रदर्शन भी देख लेते हैं।*1984 में पार्टी ने दो सीटें जीतीं। राममंदिर दूर दूर तक मुद्दा नहीं।*1989 में पार्टी ने 85 सीटें जीतीं। शाहबानों प्रकरण और रामजन्म भूमि मंदिर के ताले खुलने के बाद।*1991 के चुनावों में बीजेपी ने एक सौ बीस सीटें जीतीं आडवाणी की यात्रा के बाद।*1996 में विवादास्पद ढांचा गिरने के बाद हुए चुनावों में पार्टी ने 161 सीटें जीतीं।*1998 के चुनावों में भी राममंदिर का मुद्दा गरम था और कारसेवा राममंदिर निर्माण के नाम पर पार्टी ने एक सौ बयासी सीटें पायीं।*1999 के चुनावों में भी पार्टी ने एक सौ बयासी का आंकडा बनाए रखा।*पर 2004 से पहले राम मंदिर का मुद्दा छोडऩे वाली पार्टी दो हजार चार के चुनावों में घर कर 138 सीटों पर आ गयी।तो पार्टी ने नेताओं ने राम राम अलापना शुरु कर दिया।पर इस बीच पार्टी के नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने मंदिर मुद्दे पर अपना एक अलग राग अलापा।पर वरुण के भड़काऊ भाषण के बाद बने माहौल ने पार्टी को एक और मौका दिया कि वो उसी फ्लेवर से मिलते मुद्दे को अपना मुख्य चुनावी नारा बना ले।

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2 Comments

  1. aji sarkaar ko ram bharose hi chalana hai to ram ko to yaad karna hi padega

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  2. भाई जी , जब मुद्दा ही नहीं है तो करेंगें क्या ? देखिये राम जी वेड़ा पार करते हैं या नैया डुबोते हैं।

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