भोपाल में एक पत्रकार वार्ता में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बताया कि 2008 में मजदूरों के लिए घोषित पेंशन योजना की घोषणा शिवराज ने 2013 की पंचायत में भी कर दी। उन्होंने इस प्रकार की अन्य घोषणाओं का भी विवरण दिया। उन्होंने कहा शिवराज सिंह चौहान ने  चुनाव के पूर्व 19 अगस्त 2008 को निर्माण श्रमिकों का सम्मेलन आयोजित किया था। इसमें पूरे प्रदेश के मजदूरों को  भाजपा कार्यकर्ताओं ने मध्यप्रदेश भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल के खर्चे पर बुलाया था। इसमें मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि वे मजदूरों के लिए एक पेंशन योजना शुरू करेंगे।

किसी मजदूर की मृत्यु के बाद उसकी विधवा को 300 रूपये की पेंशन प्रतिमाह दी जाएगी। विदित हो कि यह  घोषणा भी उन आठ हजार घोषणाओं के कचरे में शामिल हो गयी जो पूरी होने की प्रतीक्षा करते-करते दम तोड़ चुकी हैं। मुख्यमंत्री को 28 अप्रैल, 2013 चुनावी वर्ष में फिर मजदूरों के वोट की याद आई और उन्होंने फिर एक मजदूर महापंचायत का आयोजन कर डाला।

पांच साल पांच माह बाद उन्होंने उसी जम्बूरी मैदान में घोषणा की कि निर्माण श्रमिक पेंशन योजना लागू की जाएगी। घोषणा एक जो पांच साल पहले की गई वही घोषणा फिर से पांच साल बाद। इस बीच दस हजार मजदूरों की मृत्यु हो गई, पर उनकी विधवाओं को पेंशन नहीं मिली। इस आंकड़े को भी सरकार ने ही 2011-12 के प्रशासकीय प्रतिवेदन में दर्शाया है।

आवास निर्माण घोषणा का पाखंड
नेता प्रतिपक्ष सिंह ने कहा कि यही नहीं मुख्यमंत्री ने इस बार फिर से मजदूरों के लिए एक हजार आवास बनाने की घोषणा की लेकिन इसके पूर्व पहले से ही लागू आवास ऋण सहायता योजना में एक भी मजदूर को लाभ नहीं मिला। 28 अप्रैल को फिर से जो उन्होंने    आवास देने की घोषणा की है वह योजना अपने प्रारंभिक अवस्था में ही विवाद के घेरे में है।  

मजदूर विरोधी आदेश
सिंह ने कहा कि अपने को मजदूरों का हितैषी बताने वाले शिवराज सरकार ने मजदूर पंचायत के ठीक 16 दिन पहले 12 अप्रैल को एक आदेश निकाला। इसमें मैदान में पदस्थ श्रम निरीक्षकों से दुकान, होटल, मल्टीप्लेक्स जिसमें दस से कम कर्मचारी है वहां श्रम अधिनियम के तहत निरीक्षण करने के अधिकार उनसे वापस ले लिए। यही नहीं अगर इन संस्थानों मंे श्रम अधिनियम के उल्लंघन की कोई शिकायत भी मिलती है तो निरीक्षण के पूर्व श्रमायुक्त से अनुमति लेना होगी। ये है हमारी मजदूरी हितैषी सरकार।

मजदूर 15 लाख पंजीयन 24 लाख 
नेता प्रतिपक्ष  सिंह ने आंकडा उपलब्ध करवाते हुए कहा कि मजदूरों के पंजीयन के मामले में भी मजदूरों के साथ धोखाधड़ी की गयी है। भारत सरकार के सर्वे अनुसार सम्पूर्ण देश में 85 लाख निमार्ण श्रमिक है तथा मध्यप्रदेश में 15 लाख मजदूरों की संख्या अनुमानित हैं मगर हमारी सरकार ने आगे बढ़कर 31 दिसम्बर, 2012 तक 23 लाख 40 हजार 212 मजदूरों का पंजीयन कर लिया।

सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री से मैं पूछना चाहता हूं कि एक ओर वे विकास दर में अव्वल होने की बात करते है, गरीबी कम होने की बात करते है, लोगों की आय बढ़ने का दावा करते हैं तो यह मजदूरों की संख्या क्यों बढ़ रही है। कहींं मजदूरों के नाम पर भाजपा और भारतीय मजदूर संघ में कार्यकर्ताओं का पंजीयन तो नहीं कर दिया है। मुख्यमंत्री इस प्रदेश की साड़े सात करोड़ जनता को इसका जवाब दें।

श्रमिकों की कल्याण निधि का पंचायत आयोजन में इस्तेमाल
मजदूरों के कल्याणार्थ मध्यप्रदेश भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल में एक निधि है। इसका बेजा इस्तेमाल शिवराज सिंह चैहान ने मजदूर पंचायत के आयोजन में किया। 28 अप्रैल, 2013 को जो मजदूर पंचायत आयोजित हुई इसके आयोजन के लिए मजदूर कल्याण निधि से साढ़े तीन करोड़ रूपये मंडल से निकाले गए पर्व में मण्डल के किसी भी बजट में महापंचायत हेतु राशि का प्रबंधन नहीं किया गया उक्त निर्णय के विरोध इंटक के अशोक गोस्वामी माननीय उच्च न्यायालय खण्ड पीठ ग्वालियर के समक्ष जनहित याचिका दायर की साथ ही एक अन्य याचिका सीटू के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष दायर की जिसमें उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि श्रमिकों के कल्याणार्थ निधि का उपयोग महापंचायत के आयोजन में नहीं किया जाएगा पूर्व में भाजपा सरकार ने 19 अगस्त, 2008 को भी श्रमिक महासम्मेलन में मंडल की राशि खर्च की।

इसके विरूद्ध इंटक के अशोक गोस्वामी ने उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी।  उच्च न्यायालय द्वारा याचिका मान्यकर 4 फरवरी, 2009 को आदेश पारित किया जिसमें राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो, भोपाल द्वारा जांच कराई गई। जांच उपरांत मंडल एवं श्रम विभाग के अधिकारियों के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण क्रमांक 96/12 दर्ज किया गया। उक्त आपराधिक प्रकरण में दोषी अधिकारियों को बचाने का कार्य भाजपा सरकार द्वारा किया जा रहा है।

सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं की गई जो सी.ए.जी. की समीक्षा रिपोर्ट में दर्शाया गया है। मंडल को 5.42 करोड़ की हानि उपकर के रूप में चेक बाउन्स होने के कारण की गई है। साथ ही अपात्र व्यक्तियों को 1896 लाख रूपये की सहायता प्रदान की गई है। वर्ष 2005-06 में मंडल द्वारा 48 एम्बुलेंस वाहनों एवं 43 ड्राइवरों की भर्ती अधिनियम एवं नियम के विपरीत की। जिससे मंडल को करोड़ों रूपये की क्षति हुई।

एम्बुलेंस वाहन खरीदने का उद्देश्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को खुश करना था, क्योंकि उक्त वाहनों से आज दिनांक तक एक भी मजदूर अस्पताल तक नहीं पहुंचाया गया जबकि वाहनों की खरीदी में 1.5 करोड़ के व्यय के साथ चालकों का वेतन एवं अन्य व्यय 2.5 करोड़ से अधिक किया जा चुका है।एम्बूलेंस खरीदी म. प्र भवन एवं अन्य संनिमार्ण कर्मकर (नियोजन एवं सेवा शर्तो का विनियमन ) नियम 2002 का नियम 227 का पूर्णत: उल्लंघन है, तथा मंडल ने 10 लग्जरी वाहन खरीदकर श्रमिकों के कल्याण निधि का भरपूर दुरूपयोग किया है। उक्त 10 वाहनों में से 03 वाहन श्रम मंत्री स्वयं उपयोग करते है।

संयुक्त वन प्रबंधन समितियों में काम करने वाले हजारों मजदूरों का आर्थिक शोषण
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि प्रदेश में 16 हजार से भी अधिक संयुक्त वन प्रबंधन समितियां कार्य कर रही है। इन समितियों में कार्यरत मजदूरों को प्रतिमाह 2000 रूपये भुगतान किया जा रहा है। सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी दर भी इन्हें नहीं दी जा रही है। इस सरकार की मजदूर विरोधी मानसिकता को उजागर करती है।

उपयुक्त योजनाओं का हवाला देते हुए सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान से मांग की है कि मृतक मजदूरों की विधवाओं के साथ जो धोखाधड़ी उन्होंने की है उसके लिए वे सार्वजनिक रूप से माफी मांगे, और दस हजार विधवाओं को 2008 जब उन्होंने घोषणा की थी तब से उन्हें पेंशन दें। पंचायतों में की गई घोषणा के अमल और उससे लाभान्वित लोगों की सूची मय नाम पते के सार्वजनिक करें और साथ ही 32 पंचायतों के आयोजन पर खर्च का मदवार ब्यौरा और वह राशि कहां से आई इसे बतायें।