जलसंकट के दौर में किसान भी बूंद-बूंद पानी की कीमत समझने लगे हैं। यही वजह है कि खेतों में सिंचाई के लिए कम पानी में ज्यादा उपज लेने की तकनीकें उन्हें आकर्षित कर रही हैं। प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में मालवा-निमाड़ के किसान सिंचाई के लिए उपलब्ध जल की हर बूंद का सर्वाधिक सदुपयोग कर रहे हैं। तीन साल में माइक्रो इरीगेशन का प्रसार क्षेत्र छह गुना से ज्यादा बढ़ा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2006 के आरंभ में 6164 हेक्टेयर भूमि में लगीं उद्यानिकी फसलें ही ड्रिप सिंचाई के दायरे में थीं, लेकिन माइक्रो इरीगेशन योजना लागू होने के बाद अब 38 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में बूंद-बूंद पानी से सिंचाई की जा रही है। खास बात यह है कि वर्ष 2008 में मालवा-निमाड़ के जिले सबसे आगे रहे हैं, जहां बागवानी के लिए किसान माइक्रो इरीगेशन को तेजी से अपना रहे हैं।
लागत के लिहाज से भारी लगने वाली इस पद्घति को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करने में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 70 से 80 फीसदी अनुदान दे रही हैं। सामान्य वर्ग के किसानों को मिलने वाली 70 फीसदी अनुदान में केंद्र और राज्य के हिस्से 40-30 फीसदी हैं, जबकि अजा-जजा वर्ग के किसानों के लिए 40-40 फीसदी।
तीन साल में कुल 64 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं और विभाग का कहना है कि इस खर्चे से 38 हजार 794 हेक्टर जमीन की सिंचाई कम से कम पानी में मुमकिन हो रही है। हालांकि उद्यानिकी फसलों का रकबा छह लाख 46 हजार हेक्टर है और इस लिहाज से मप्र में माइक्रो इरीगेशन की उपलब्धि ऊंट के मुंह में जीरे बराबर है।