शिवरात्रि पर भगवान शिव का गंगाजल, दूध, शहद और घी आदि से जलाभिषेक किया जाता है। भगवान शिव अपने भक्तों पर आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। केवल इसके लिए सच्चे मन से भोले भंडारी का नाम लेने की जरूरत है। श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर संसार का कल्याण करने वाले भगवान शिव सभी के आराध्य है। शिवरात्रि के दिन भोले का जलाभिषेक करने के लिए श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। देश के कोने-कोने से श्रद्घालु आकर इस अति प्राचीन मंदिर में भगवान शिव का गंगाजल, दूध, शहद, घी और अन्य पदार्थो से जलाभिषेक करते है। शिवरात्रि गुरुवार को है। पंचाग के मुताबिक दिन में 1.31 मिनट से जलाभिषेक का शुभ मुहूर्त है, जो अगले दिन 12 बजे तक रहेगा। वैसे शिवरात्रि पर भगवान शिव को जलाभिषेक करने की परंपरा सदियों पुरानी है। देवाधिदेव महादेव सर्वत्र विद्यमान है। बिना शिव के सृष्टि की कल्पना करना व्यर्थ है। जब-जब प्रलय के बादल छाते है, तब-तब भक्त भोले भंडारी को याद कर उनकी पूजा-अर्चना करते है, क्योंकि भोले ही समस्त मानव जाति का कल्याण करते हैं। शिव की भक्ति करने से ही मुक्ति मिलती है और मोक्ष के मार्ग पर ले जाने वाले दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। लिंग के प्रतीक के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। वैसे मुख्य रूप से चार तरह के लिंग होते है। जिनमें एक मनुष्य द्वारा निर्मित, दूसरा ऋषियों द्वारा स्थापित, तीसरा देवताओं द्वारा स्थापित और चौथा स्वयं प्रकट होने वाला स्वयंभू शिवलिंग। लिंग रूप भगवान शिव का अति कल्याणकारी स्वरूप है, जिसके दर्शन से ही सभी कष्ट दूर हो जाते है। शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसके पीछे बड़ी रोचक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मांड की सृष्टि की समय जब चारों ओर प्रलय हो गई। पशु, पक्षी, मनुष्य और राक्षस सब मरने लगे। चारों दिशाओं में अंधकार फैल गया। उस वक्त भगवान विष्णु अपने शयनकक्ष में सोए हुए थे। तभी ब्रह्मा आए और क्रोधित होकर उनसे पूछा कि तुम कौन हो। इस पर विष्णु ने उन्हें पुत्र कह दिया। इस पर ब्रह्मा और क्रोधित हो गए और उन्होंने इसका कारण जानना चाहा। तब विष्णु ने कहा कि सृष्टि का कर्ताधर्ता मैं हूं। यह सुनकर ब्रह्मा और विष्णु में कौन बड़ा है को लेकर विवाद शुरू हो गया। विवाद बढ़ता गया। अंत में उनके सामने अग्नि का एक महास्तंभ प्रकट हुआ, जो ऊपर से लेकर नीचे पाताल लोक तक अनंत था। विष्णु ने जब यह देखा तो उन्होंने ब्रह्मा को कहा कि जो इस लिंग का सिरा ढूंढ लेगा, वही बड़ा होगा। इस पर विष्णु ने वाराह का और ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और दोनों ही ज्योतिर्लिंग की तलाश में निकल पड़े। दोनों ही कई हजार बरस तक घूमते रहे, लेकिन उन्हें लिंग का छोर नहीं मिला। अंत में थक हार कर लौटते समय ब्रह्मा को आसमान से केतकी का फूल गिरता हुआ दिखाई दिया। ब्रह्मा ने केतकी के फूल को भगवान शिव के मस्तिष्क का फूल समझ कर उसे ले लिया और प्रमाण स्वरूप उसे लेकर चल दिए। जब वह नीचे आए तो भगवान शिव के सामने उन्हें बताया कि उन्होंने उनका ऊपरी छोर पा लिया है केतकी का फूल इसका प्रमाण है। साथ ही ब्रह्मा ने इसकी सत्यता के लिए गाय माता से भी कहलवा दिया। ब्रह्मा के इस झूठ पर शिव क्रोधित हो गए। उन्होंने केतकी को श्राप दिया कि आगे से कभी भी तुम्हारे फूल की पूजा नहीं होगी। इसके बाद ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक सिर को उन्होंने काट डाला। भगवान शिव के क्रोध को शांत करने के लिए ब्रह्मा और विष्णु ने शिवलिंग की पूजा करनी शुरू की। तभी से पूजा की परंपरा शुरू हुई। शिवरात्रि पर पूजा करने का विधि विधानभगवान शिव चतुर्दशी तिथि के स्वामी है। ज्ञान और कर्म इंद्रीय के स्वामी शिव हैं। ज्ञान इंद्रीय में जीभ, नेत्र, नासिका, कर्ण और त्वचा आदि तत्व आते हैं। । कर्म इंद्रीय में हाथ, पांव, मुख, गुदा, उपस्थ और अंत:करण आते हैं, जिसमें चित्त, मन, आत्मा, बुद्घि आते है। जो भक्त अपनी भक्ति से शिव को प्रसन्न कर लेगा, वह भी इनका स्वामी बन जाएगा। शिवरात्रि पर श्रद्धालु परंपरागत पूजन सामग्री के साथ शिवलिंग की पूजा करते है। सबसे पहले स्नान कर पूजा की सामग्री इकट्ठी की जाती है। इसके बाद उत्तर दिशा, जहां पर कैलाश पर्वत विराजमान है की ओर मुंह कर ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए। जाप करते वक्त मन पूरी तरह भोले भंडारी में रमा होना चाहिए। इसके बाद भगवान को पूजा की थाली, जिसमें कुमकुम, चंदन, गंगाजल, दूध, शहद, दही, घी और फल हो, अर्पित करनी चाहिए। इसे अर्पण करते वक्त ही मनोकामना मांगनी चाहिए। जो भक्त सच्चे मन से शिव से कुछ भी मांगता है उसे वह जरूर मिलता है। पूजन सामग्री शिवरात्रि पर शिवभक्त शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश करते है। शिवरात्रि पर मुख्य रूप से बेल पत्र, मौसमी फल जैसे बेर, केले, अमरूद और अंगूर के साथ दही, घी, दूध, शहद और गंगाजल से शिवलिंग की पूजा की जाती है। शिवभक्त मंदिर या घर में रखे शिवलिंग पर इनका भोग चढ़ाता है और मन्नत मांगता है।