पिछले पांच साल में सिंचाई के क्षेत्र बढाने के नाम पर राज्य में साढे पांच हजार करोड रूपए खर्च कर दिए गए। इस दौरान सिंचित क्षेत्र बढने के बजाय घट कर आधा रह गया। भाजपा सरकार दावा करती रही है कि उसके कार्यकाल में सिंचाई परियोजनाओं का बजट कई गुना बढा है। इस दौरान कागजों पर तो नहरें लम्बी होती रहीं, लेकिन हर साल सिंचित होने वाले इलाके का ग्राफ सवा दस लाख से घटकर साढे पांच लाख हेक्टेयर रह गया। यह कुल क्षमता का 20 फीसदी और दस साल का न्यूनतम है। कुल विकसित सिंचाई क्षमता का आंकडा कागजों में 20 से 26 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
विभाग की दलील
— फसल चक्र में बदलाव
— कम वर्षा के कारण जलाशयों की क्षमता घटी
— पुरानी सिंचाई परियोजनाओं व नहरों की मरम्मत के लिए अपर्याप्त बजट
— सिंचाई परियोजना क्षेत्रों में निजी सिंचाई साधन विकसित होते गए
— शहरी व औद्योगिकीकरण से कृषि भूमि कम होने के कारण सिंचाई घट रही है
असलियत
— पिछले मानसून सीजन को छोडकर प्रदेश में वर्षा औसत के आस-पास रही है
— सूबे के तमाम जलाशयों में पानी का भराव भी 50 से 84 फीसदी तक रहा
— यदि जलाशय 60 फीसदी से ज्यादा भर जाते हैं तो फिर सिंचाई पर्याप्त होनी चाहिए
— रबी व खरीफ की कुल सिंचाई पचास फीसदी से कम रही
"बैसाखियों" के सहारे चलने का नतीजा
विभागीय जानकारों के मुताबिक सेवानिवृत्त और वरिष्ठ पदों पर बैठे जूनियर प्रभारियों के भरोसे काम चलाए जाने से सिंचाई परियोजनाओं की ये हालत हुई। जल संसाधन विभाग में शीर्ष नेतृत्व पर जहां प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी व अपर सचिव बी.पी. शर्मा लम्बे समय से जमे हैं वहीं निचले स्तर की कमान कार्यवाहक अधिकारियों के हाथों में होने से सिंचाई परियोजनाओं में न तेज गति से काम हो रहा है और न ही मरम्मत, गुणवत्ता, संचालन और मॉनिटरिंग पर ध्यान दिया जा रहा है।
छह साल से द्वितीय श्रेणी से प्रथम श्रेणी में नियमित पदोन्नति नहीं हुई। वरिष्ठता क्रम लांघकर चहेते अभियंताओं को प्रभारी बना दिया। पिछले छह साल में प्रथम श्रेणी के 401 अफसर सेवानिवृत्त हुए। इन पदों पर उनके स्तर के अधिकारी नहीं लगे। सामान्य प्रशासन विभाग प्रभारी व्यवस्था को 6 मार्च 2003 को ही खत्म कर चुका है, लेकिन जल संसाधन विभाग में ये पांच साल बाद तक भी जारी है।
वित्तीय संहिता में प्रभारी को तीन माह के ही वित्तीय अधिकार देने का प्रावधान है लेकिन यहां वर्षो से वित्तीय अधिकार प्रभारियों के पास ही हैं। इस महकमे की कमान पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में मंत्री अनूप मिश्रा के हाथ में तथा उससे पहले दस साल कांग्रेस शासन में मंत्री सुभाष यादव के पास रही।
पांच लाख की योजना दो करोड की
सिंचाई परियोजनाओं में स्टॉप डैम का नाम बदल कर डायवर्जन चैनल व बैराज योजना के नाम पर धन लुटाया जा रहा है। डिवीजनल स्तर पर कारगुजारी में पांच लाख की योजनाएं डेढ से दो करोड की हो गईं। डायवर्जन की ये परियोजनाएं ऎसी नदियों पर बना दी गईं, जिनमें साल भर पानी ही नहीं रहता। इन योजना से सिंचाई में कोई बढोतरी नहीं हुई।