Header Ads Widget

 


Responsive Advertisement

copy-paste

होली आते फिजां रंगीन होने लगती और लोगों पर फागुनी रंग चढ़ जाता है।

फागुन आते ही फिजां की रंगत रंगीन होने लगती है और लोगों पर फागुनी रंग चढ़ जाता है। हर तरफ मौज मस्ती, हल्ला-गुल्ला और गीत-संगीत से सारा आलम सराबोर। बदले वक्त ने होली का स्वरूप भले ही आधुनिक कर दिया हो, लेकिन होली के लोकगीतों में जो छेड़छाड़, उमंग और रंगत है, उसके सामने बाकी सब रंग फीके नजर आते हैं। भांग की मस्ती में ढोलक की थाप जोगीरा गाने-सुनने का मजा लाजवाब है। मस्ती का आलम यह रहता है कि लोग बड़े-छोटे का भेद भी भूल जाते है। होली गीतों में हिंदुओं के तीन प्रमुख देवताओं राम, कृष्ण और शिव की होली के बारे में वर्णन होता हैं। 'शिव शंकर खेलें फाग गौरा के संग' और 'कान्हा बरसाने में आ जाओ राधा तके राह' जैसे शिव और कृष्ण से जुड़े लोक गीत लोकमानस में काफी लोकप्रिय हैं। होली के करीब एक माह पहले से ही फाग गाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। यहां अलग-अलग पौराणिक कथाओं को फाग के रंगो में सराबोर कर लोकशैली में पेश किया जाता है। होली पर गाए जाने वाले लोकगीत भक्तिपरक होने के साथ ही श्रृंगार प्रधान होते हैं जो लोगों के मानस को हर्ष और मस्ती में सराबोर कर देते हैं। यह गीत आम आदमी के होने के बाद भी शास्त्रीय संगीत से जुड़े होते हैं। इसमें साज, राग और आलाप का स्थान प्रमुख होता है। ऐसा संभव नहीं फिल्मों में होली के लोकगीतों की बात न की जाए होली के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों की परंपरा शहर की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लुप्त होती जा रही है। मगर गांवों में आज भी यह परंपरा कहीं न कहीं किसी न रूप में अवश्य जीवित है।

Post a Comment

0 Comments