पड़ोसी की रक्षा में ही हमारी सुरक्षा हैं इस ब्रम्ह वाक्य को झुठलाया नहीं जा सकता जिसने इसकी अनदेखी की उसने धोखा भी खाया बात मोहल्ले, पड़ोस की ही नहीं पड़ोसी देशो की भी होती हैं फिलहाल पाकिस्तान में जिस तरह से उथल-पुथल चल रही हैं वह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अन्य पड़ोसी देशो के लिए भी गंभीर चिंता का विषय हैं जिसकी गंभीरता को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बखूबी समझा हैं यही कारण हैं कि उन्होंने पकिस्तान के तत्कालीन हालत को देखकर भारतीय आतंरिक सुरक्षा संबंधी बैठक ली हालाँकि पाक के हालत पर विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कुछ भी टिपण्णी करने से इनकार करते हुए यह कह दिया हैं कि पाक का आतंरिक मामला हैं जिसे पाकिस्तान शीघ्र सुलझा लेगा यह भारत की अपनी सुझबुझ और विदेश नीति का एक हिस्सा हो सकता हैं, लेकिन सच्चे मायने में जो खबरे आ रही हैं वे बेहद चिंताजनक हैं पाकिस्तान की दिनों दिन खस्ता होती राजनीति एक ऐसे मोड़ पर पहुँच गई हैं जहाँ आगे सिर्फ अंधे मोड़ के अलावा कुछ नहीं हैं, क्योंकि सेना एक बार फिर मुल्क की छाती पर सवार होने को बैचेन हैं और कट्टरपंथी ताकते अपने दांव लगाए बैठी हैं ऐसे में लोकतांत्रिकसरकार के सामने कई सवाल खड़े हैं जिनका जवाब क्या होगा शायद उसके सामने नहीं हैं लोकतंत्र की वापसी के साझा आन्दोलन में एक साथ शामिल रहीं पकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग अब एक-दुसरे के खिलाफ ताल थोक रही हैं आसिफ अली ज़रदारी और नवाज़ शरीफ को कट्टरपंथियों या सेना के बजाय एक-दुसरे से ज्यादा खतरा महसूस हो रहा हैं राजनीतिको में आपसी विश्वास की कमी ही वह सूत्र हैं, जिसके आधार पर देश की हुकूमत संभालने के लिए अपने पैर तौलती पाक सेना देश की राजनीति को लोकतंत्र की पटरी से निचे उतार सकती हैं सेना वैसे भी देश की सियासी जमात से ज्यादा अमेरिका की सुनती हैं अमेरिका का इतिहास रहा हैं कि अगर उसके संकुचित हितों को तानाशाही मदद मिलती हैं तो वह विश्व जनमत की परवाह किये बगैर तानाशाह हुकूमत को खुलेआम समर्थन और मदद मुहैया कराता हैं आज की तारीख में नवाज़ शरीफ एक बड़ा आन्दोलन खडा कर चुके हैं ज़रदारी के मुकाबले उनकी लोकप्रियता पिछले दिनों काफी बढ़ गई, क्योंकि उन्होंने इफ्तिखार चौधरी की बहाली को लगातार मुद्दा बनाया हुआ हैं न्यायमूर्ति चौधरी को मुख्य न्यायाधीश के पद से बर्खास्त किए जाने के विरोध में वकीलों की पहल पर शुरू हुआ आंदोलन एक जन आंदोलन में तब्दील हो गया था तमाम राजनितिक दल इसमें आ जुड़े थे और इसने मुशर्रफ़ की सरकार को झुकाकर लोकतंत्र की वापसी की राह प्रशस्त की थी ज़रदारी ने सत्ता में आने के तीस दिनों के भीतर न्यायमूर्ति चौधरी और दुसरे बर्खास्त जजों की बहाली का वादा किया था लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे ज़रदारी ऐसा ककर कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते फिलहाल जो हालत हैं वे संवेदनशील हैं और भारत को भी ऐहतियात बरतने में पूरी सतर्कता रखनी होगी
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