भोपाल। पानी को लेकर लोग तो मरने-मारने पर उतारू हो ही चुके हैं, हालात न सुधरे तो राज्य के अभयारण्यों व नेशनल पार्को में भी वनराज और उनकी प्रजा पानी पर मारामारी करती नजर आएगी। कम वर्षा और तेज होती गर्मी की वजह से प्रदेश के वन क्षेत्रों, अभयारण्यों व नेशनल पार्को में कुछ ऎसे ही हालात बनते जा रहे हैं। वन्यजीव संरक्षण से जुडे कुछ इलाकों के जलाशयों में पानी सूखने या कम होने से इस बार गर्मी में वहां पानी का प्रबंधन करना वन विभाग के लिए चुनौती है।
प्यासे रह जाएंगे शाकाहारी :- वन क्षेत्रों में पानी का समान वितरण नहीं हुआ तो वन्यजीवों में पानी के लिए संघर्ष की नौबत आ सकती है। हिंसक जीवों के जल स्त्रोतों के पास डेरा जमा लेने से शाकाहारी जीव के प्यासे मरने का खतरा है।
खतरे में जान :- गर्मी में कुछ जलाशयों पर ज्यादा जानवर जमा होंगे। ऎसे में शिकारी पानी में जहर मिला कर जानवरों को मारने की कोशिश कर सकते हैं। पानी की कमी से वन्यजीव अभयारण्यों से बाहर भी जा सकते है। जहां उन्हें ग्रामीणों व शिकारियों से जान का खतरा है। एक जगह ज्यादा वन्यजीवों के जमा होने से प्राकृतिक आवास के "डिग्रेडेशन" का भी खतरा है।
मार्च में ही आई "मई" :- सूत्रों के मुताबिक संरक्षित क्षेत्रों के जलाशयों में मार्च में ही मई जैसी स्थिति बन गई है। नेशनल पार्को के कैम्पों में ड्यूटी करने वाले वनकर्मियों के लिए भी पानी का इंतजाम करना होगा। अभी से कुछ कैम्पों को अधिक पानी वाले स्थानों पर ले जाना पड रहा है। जानवर भी अभी से अधिक भराव वाले जलाशयों की ओर रूख करने लगे हैं।
आग की आशंका :- वन्यजीवों में पानी की पूर्ति घास व पत्तियों से भी होती है। इस बार घास सूख चुकी है। पत्तियां भी सूखकर झड रही हैं। इस कारण अब इनके जरिए होने वाली पानी की पूर्ति भी नहीं हो पाती। सूखी घास के कारण वनों में आग लगने की घटनाएं भी हो रही हैं।
प्राकृतिक तरीके पर जोर :- संरक्षित क्षेत्रों में पेयजल प्रबंधन के प्राकृतिक तरीकों पर जोर दिया जा रहा है। इनमें बहते पानी को रोकना, जलस्त्रोतों की सफाई, गहरी करण व झिरियां खोदना शामिल है। वन्यजीवों में कुछ अधिक व कुछ कम पानी पीते हैं। उनके इलाकों को चिन्हित कर पेयजल की व्यवस्था इसी अनुपात में रखी जाएगी। टैंकरों से पानी लाने का विकल्प खुला है। हालांकि बाहर से पानी मंगवाने में वन्यजीवों के लिए "पॉइजनिंग" का खतरा रहता है।
जारी किए चार करोड :- वन विभाग ने गर्मी के मौसम में पेयजल व्यवस्था के लिए चार करोड रूपए की राशि जारी की है। इसके अलावा विशेष परिस्थितियों वाले इलाकों से जो भी कार्ययोजना आएगी उसके अनुरूप राशि उपलब्ध कराई जाएगी।
हालात की बानगी - कान्हा नेशनल पार्क :- स्थिति विकट। एक दर्जन वनकर्मियों के कैम्प बदले। उपलब्ध बजट के अलावा गेट मनी की राशि भी पेयजल में लगाने की नौबत आ सकती है।
पन्ना नेशनल पार्क :- कम हो रहे पानी से गर्मी में होगी दिक्कत। कुछ "सॉसर" में अप्रेल से डलवाना पडेगा पानी। पानी की स्थिति पर नियमित निगरानी।
संजय नेशनल पार्क :- सूखने के कगार पर पहुंचे जलाशयों में 50-60 स्थानों पर कराई "डीपनिंग"। ढाई-तीन किलोमीटर के दायरे में पानी उपलब्ध कराने की मशक्कत।
सतपुडा नेशनल पार्क :- होशंगाबाद क्षेत्र में अच्छी बारिश से फिलहाल दिक्कत नहीं। गर्मी में झिरियां खोदनी होंगी।
माधव नेशनल पार्क :- ग्वालियर सम्भाग में सामान्य से अधिक वर्षा से साख्य सागर व माधव झील में अभी दिक्कत नहीं। लेकिन मझेरा क्षेत्र में 15 अप्रेल के बाद जलस्त्रोत सूख जाएंगे। करीब 10 स्थानों पर बने "सॉसर" में टैंकर से डालना होगा पानी।