सनृ 1974 में शेरों की हिफाजत के लिए जो राष्ट्रीय परियोजना बनी थी उसी के तकत कान्हा को राष्ट्रीय उधान घोषित किया गया और एशिया भर के सभी वन्य अभयारण्यों में यह शेरों के लिहाज से अग्रणी माना जाता है। आजादी के बाद जब सरकार को बाघों की घटती संख्या के बारे में पता चला तो सरकार ने 1952 में कान्हा सेंचुरी को बांघों के लिए संरक्षित कर दिया और एक विशेष अध्यादेश बनाकर 1955 में सरकार ने राष्ट्रीय उधान कान्हा सेंचुरी को पूर्णतया संरक्षित घोषित कर दिया जिससे इस उधान की दशा ही बदल गई। यहां की दर्शनीय वस्तुओं की बात करें तो सबसे पहले यह जान लेना चाहिए कि कान्हा में करीब 22 तरह के स्तनधारी जानवर पाए जाते है। जिनमें लंगूर , जंगली सुअर , लोमडी , चीतल , धब्बेवाले हिरण , बारहसिंगा ,झाबर हिरण , सांभर आदि जानवर तो आमतौर पर देखने को मिल जाते हैं लेकिन जंगली कुता ,गौर , खरगोश आदि कभी - कभार ही दिखते हैं। कान्हा में लगभग 200 तरह के पक्षियों की जातियां देखने को मिलती हैं। पानी के पक्षी कान्हा के अनेक छोटे - छोटे तालाबों में देखने को मिल जाते हैं। यहां आने के लिए जबलपुर , रायपुर , और नागपुर सबसे नजदीकी हवाई अडे हैं। जबलपुर व बिलासपुर नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। जबलपुर से किसली व मुकी तक नियमित बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। किसली व मकी कान्हा उधान के लिए दो प्रवेशद्वार हैं। जबलपुर से किसली वाया चिरैया डोंगरी १६५ किलोमीटर तथा मुकी वाया मोटीवाला 203 किलोमीटर हैं। किलोमीटर हैं। बिलासपुर से आने वाले सैलानियों के लिए दूरी 182 किलोमीटर है। सूर्यास्त से पहले किसली तक पहुंच जाना ठीक रहता हैं। कान्हा राष्ट्रीय उघान को घूमने के लिए मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम से गाइड , जीपें तथा हाथी भी भाडे पर मिलेते हैं। यदि आप बच्चों के साथ यहां आए हैं उन्हें हाथी की सवारी जरूर कराइए इससे वे रोमांचित हो उठेंगे। यहां ठहरनेके लिए कान्हा सफारी लॉज ,मकी टूरिस्ट होटल , तथा बघीरा लॉज ठीक हौं। इनमें एक तो लगभग सभी ज्यादा महंगे भी नहीं हैं। साथ ही इनको लोकेशन भी आपको सुखद अहसास कराने वाली हैं। कान्हा राष्ट्रीय उघान में घूमने के लिए फरवरी से जून के अलावा सर्दी का मौसम ठीक रहता हैं। जुलाई से 31 अक्टूबर तक यह उघान सैलानियों के लिए बंद रहता हैं। इस उघान के पूरे भ्रमण के लिए लगभग चार दिन तो लग ही जाते हैं।