सीहोर। प्रदेश का 14 वां जलाभाव ग्रस्त जिला, भू-जल और प्राकृतिक जल संसाधनों की दृष्टि से कंगाल जिला, सहित कई अन्य उपाघियों से सम्मानित हो चुके प्रदेश के सबसे चर्चित जिले में पीने का चाहे पानी लोगों को नसीब न हो, लेकिन बिल्डिंगें बनाने के लिए यहां खूब पानी है। सरकार पानी के लिए अलग से बजट मुहैया करा रही है, पानी खोजने के लिए आसमानी सेटेलाइटों की मदद ली जा रही है, लेकिन सरकारी निर्माण कार्य इसी पानी से धडल्ले से हो रहे हैं।कहने का आशय यह है कि एक ओर तो जिले में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है दूसरी और हजारों लीटर पानी निर्माण कार्य के नाम पर रोजाना बहाया जा रहा है। दर्जनभर जगहों पर गाडियां धोई जा रही हैं, शहरी क्षेत्रों में बने बागानों ओर खेतों में संरक्षित जल से सब्जियां उगाई जा रही हैं।इतना सब होने के बाद भी न तो कोई इस पानी की बर्बादी को रोकने आगे आ रहा है न ही किसी प्रकार की रोक ही निर्माण कार्यो पर लगाई जा रही है।आखिर इतना लंबा इंतजार क्यों सीहोर जिले को जलाभाव ग्रस्त जिला घोषित हुए दो महीने से अघिक हो चुका है। भूमिगत जल जहां तेजी से नीचे जा रहा है, वहीं लगभग सभी प्रमुख जलाशय सूख चुके हैं, नगर में टैंकरों के व्यवसाय ने जोर पकड लिया है, लेकिन निर्माण कार्यो पर बहाए जा रहे पानी को लेकर अभी तक किसी ने विचार करना उचित नहीं समझा है। निर्माण कार्यो पर रोक न लगना चिंता का विषय है। पेयजल संकट के दौर में जल्द इस संबंध में आदेश जारी कर दिए जाएंगे। पानी की बचत के लिए हर आदमी को आगे आना चाहिए पानी हम सबकी जरूरत है। भूख लगने पर कुछ देर रोटी के बिना तो हम रह जाते हैं, लेकिन प्यास लगने के बाद पानी की जरूरत का अहसास आपको चैन नहीं लेने देता। इसलिए हम सबका फर्ज है कि पानी की बचत के लिए हर आदमी आगे आए।
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