चुनावों में किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करने वाले मतदाताओं को भी अपनी भावना व्यक करने का अवसर सुलभ कराने के प्रति निर्वाचन आयोग की गंभीरता स्वागत योग्य है। इस लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे के मतदान दौरान विभित्र क्षेत्रों के अनेक मतदाताओं ने अपने नकारात्मक रूख का प्रदर्शन किया। ऐसे मतदाताओं को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आया और उन्होंने अपने - अपने तरीके से नकारात्मकता का इजहार किया। जन प्रतिनिधित्व कानून आरपीए की धारा 49 ओ के तहत मतदाता को अपने निवार्चन क्षेत्र के किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने के दिये गये अधिकार को लेकर आयोग ने सरकार से कानून में संशोधन का आग्रह किया हैं। जिससे कि ईवीएम में इस विकल्प के लिए बटन रखा जा सके। इससे मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्र के किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने के अधिकार का उपयोग कर सके। इसमे कोई दो राय नहीं है कि चुनाव सुधार के संदर्भ में यह एक अच्छा कदम है और इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में और मजबूती आने की संभावना बढ जाएगी। लेकिन इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस अधिकार का रानैतिक स्तर पर दुरूपयोग किया जा सकता हैं। संभव है इससे विध्नसंतोषी लोग लाभ उठाने की जुगत में लग जाएं। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इसकी संख्या बढने पर चुनाव अवैध हो जाएगा। उधर दिल्ली में चुनाव अधिकारियों ने तय किया है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में मताकार के दौरान किसी को भी मत नहीं देने वालों का हिसाब रखा जाएगा। ईवीएम में ऐसा कोई विकल्प नहीं होने कारण पीठासीन अधिसकारियों को निर्देश दिया जाएगा कि वे ऐसे मतदाताओं को फार्म 17 ए मुहैया कराएं जिसमें किसी भी उम्मीदवार को मत नहीं देने का विकल्प होगा। मतदान के दिन नियम 49 ओ के तहत पीठासीन अधिकारी मतदान करने से इंकार करने वाले मतदाताओं की टिप्पणी दर्ज करेगा कि वह अपना मत दर्ज नहीं कराना चाहता। पिछले विधान सभा के दौरान दिल्ली में यह विकल्प रखा गया था लेकिन इसके आंकडे रखने का कोई विकल्प नहीं था। निश्रित रूप से ऐसी व्यवस्था से यह तो पता चलेगा कि कितने प्रतिशत मतदाता अपना नकारात्मक रूख दिखाते हैं। बहरहाल अभी चुनाव सुधार की काफी गुजाइश हैं और आयोग इस दिशा में गंभीरता पूवक आगे बढ रहा हैं। चुनाव सुधारों को सख्ती से लागू करने की चल रही कवायद भी स्वागत योग्य हैं। अंतत यह विचारणीय प्रश्न है कि ईवीएम में किसी भी प्रतिनिधि को अपना मत नहीं देने का बटन का इस्तेमाल ज्यादा होने को किस रूप में लिया जाना चाहिए। अगर नकारात्मक वोटों की संख्या सकारात्मक वोटों से ज्यादा हो जाएगी तो चुनाव भले ही अवैध या निरस्त न हो लेकिन इससे चुनेगये जन प्रतिनिधि के प्रति विश्रास कायम नहीं रह सकेगा। जो भी हो मत सकारात्मक हो या नकारात्मत जनता की भावनाओं का ख्याल तो रखना ही पडेगा।
2 Comments
फार्म नं. 17 ए जनतंत्र के लिए सब से महत्वपूर्ण है। ईवीएम में बटन हो तो और भी अच्छा।
ReplyDeleteनिःसंदेह स्वागत योग्य कदम है .
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