नेताओं पर जूते - चप्पल चल रहे हैं। ये जूते किसी न किसी मुद्दे पर उछाले जाते हैं। जूते फेंकने या उछालने वाला चाहे वह पत्रकार हो या आम आदमी अथवा पार्टी कार्यकर्ता उसकी मंशा न सिर्फ अपनी भावना व्यक करने की होती हैं। बल्कि वह चर्चित भी होना चाहता हैं। कटनी में शीर्ष नेता एवंपी-एम-इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी पर उसकी ही पार्टी के एक कार्यकर्ता ने चप्पल फेंक दी। हालांकि यह चप्पल आडवाणी को लगी नहीं] लेकिन कार्यकर्ता पावस अपनी मीडिया तक पहुंचाने में सफल रहा। पारस ने कई स्तर पर दुस्साहस किया हैं। आडवाणी भारत के शीर्ष नेताओं में से एक हैं] यातनाम भी। उनपर जो चप्पल या खडाऊ फेंका गया, वह केंद्रीय गृहमंत्री पी- चिदंबरम पर फेंका गया। जूता से अलग किस्म का था। यह चप्पल जार्ज बुश या नवीन जिंदल परफेंके गये जूतों के समान भी नहीं था। भले ही प्रसिद्वि पाने के लिये लोग ऐसी हरकतें कर देते हैं। मगर कहीं न कहीं यह आक्रोया का प्रतीक तो हैं। लेकिन,अपनी भावनाओं या आक्रोश को व्यक करने का यही एक तरीका नहीं हैं। यहां यह कहने की जररूत कतई नहीं हैं। कि श्री आडवाणी इस पूरे घटनाक्रम कोशालीनता से लेंगे और इसका परिमार्जन भी करेंगे जैसा कि बुश या चिदंबरम ने भी किया। लेकिन उन्हें इस पर चिंतन करने की स्थिति से गुजरना होगा। सवाल सिर्फ इतना हैं। कि भावनाओं को अभिव्यकि देने के लिये ऐसे तरीकों के इस्तेमाल की हतोत्साहित किया जाना चाहिये। लोगों में पनप रही ऐसी प्रवृतिपर अंकुश लगाया जाना चाहिये।
1 Comments
आप की बात सही है लेकिन फिर आम आदमी के पास विरोध का कोई तरीका भी तो नही है।हताशा में आदमी कुछ भी कर सकता है।इन नेताओ पर हड़ताल का कोई खास असर नही होता..्विरोध का कोइ असर नही होता...इस जूते का भी कांग्रेस पर कोई खास असर नही हुआ.....वर्ना सज्जन कुमार के भाई को टिकट ना मिलती।अब बताएं कि आम आदमी अपना रोना किस के आगे और कैसे रोएं???
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