कोर्ट में किसी भी मामले की सुनवाई के वक्त वकीलों की पूछताछ अहम रहती हैं। यानी वादी और प्रतिवादी दोनो पक्षों से पूछताछ और बहस से बहुत हद तक फैसले प्रभावित होते हैं। कोर्ट का विद्वान न्यायधीश दोनो पक्षों को सुनता है और साक्ष्यों को जांचता - परखता है और फिर निष्पक्ष भाव से अपना फैलता सुना देता हैं। लेकिन इस दौरान अगर वकील अपनी हदें भूलता है, तो वही होता है जो दिल्ली के कडकडडूमा अदालत परिसर में हुआ। कडकडडूमा अदालत परिसर में उस वक्त अच्छा खासा बवाल मच गया जब एडिशनल सेशन जज विनय खत्रा की अदालत में बयान दर्ज कराकर बाहर आई बलात्कार पीडिता ने कोर्ट रूम के बाहरबचाव पक्ष के अधिवका की जमकर धुनाई कर दी। पीडिता का आरोप है कि वकील उसके साथ बदसलूकी कर रही हैं। गौरतलब है कि बलात्कार पीडिता पूजा ने २००४ में जिस अवतारसिंह नाम के व्यकि पर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है उसी से उसने शादी भी कर ली हैं, पीडिता ने अदालत में कहा कि बेशक बलात्कार का आरोपी मेरा पति बन गया हैं। लेकिन यह सच है कि उसने पहले मेरे साथ बलात्कार किया और फिर मुझसे शादी कर ली। गुरूवार के दिन पूजा ने अपने पति के खिलाफ बयान दर्ज कराए थे। जिस पर बचाव पक्ष के वकील और पीडिता के बीच गर्मागर्मी भी हो गई थी। इससे पहले देश में अनेक ऐसे मामले आये, जिसमें वकीले सफाई की पूछताछ के तरीके पर एतराज जताया जा रहा हैं। यह गौरतलबहै कि किसी भी स्त्री के लिए उसकी सबसे बडी पूंजी उसका शील, उसकी अस्मत हैं। इसके छिन जाने के बाद उसकी मनोदशा, उसकी व्यथा को कोई दूसरा कैसे समझ सकता हैं। इसे वहीं समझ सकता है, जिस पर हू - ब - हू ऐसा ही कुछ गुजरा हो। ऐसे में पूजा की मानसिक अवथा को समझना इतना आसान भी नहीं हैं। पूछताछ के तरीके और लोकलाज के भयवश कई बार पीडिता अपने दर्द ब्यान नहीं कर पाती अथवा कमजोर पड जाती हैं। और इसका लाभ बलात्कारी उठा ले जाता हैं। यह भी गौर के काबिल बात है कि आखिर पीडिता पूजा को उससे जबरिया दुष्कृत्य करने वाले से क्यों शादी करनी पडी। निश्चित रूप से इसके पीछे लोकलाज का भय तो है ही, बलात्कारी द्वारा एक घिनौने अपराध से बच लेने का जुगता भी हैं। पीडिता के मुताबिक वकील ने उसके वस्त्र भी ख्ींचे। यघपि पुलिस ने इस घटना को दर्ज नहीं किया है, लेकिन उसका कहना है कि पीडिता मानसिक रूप से परेशान हैं। पुलिस के इस कथन से भी यह स्पष्ट होता हैं। कि पीडिता का आक्रोश क्यों इतना मुखर हो उठा कि उसने वकील की जमकर धुनाई कर दी। बहरहाल, विचारणीय प्रश्न तो यह कि ऐसे मामलों में पीडिता को पूरी सहानुभूति मिलना चाहिए और कोशिश यह होनी चाहिए कि सामाजिक स्तर पर उसे किसी भी प्रकार से परेशानी न हो।