शीर्षक देखकर आप चौंक गए होंगे। ये नरेंद्र मास्साब कौन हैं? यह प्रश्न आपके ज़ेहन में कौंध रहा होगा। जी हां, ये नरेंद्र मास्साब मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बड़े भाई हैं। यूं तो मास्साब विगत तीन बरसों से राजनीतिक-प्रशासनिक वीथिकाओं और रेत, खेत और जैत की गलियों में बहुचर्चित हैं। रेत इनके लिए गाय-माता समान है। इन्हें अब तक जो कुछ मिला है, वह रेत के उत्खनन से ही मिला है। जैत इनका पैतृक गांव हैं, जहां ये एक सरकारी स्कूल में मास्टर हैं। 'हैं शब्द को आप और हम विलोपित कर सकते हैं, यह विलोपन क्रिया के पीछे रेत की रीत-राग है। आदरणीय नरेंद्र मास्साब विगत विधानसभा चुनाव के दौरान भी चर्चाओं में आए थे, जब कुछ जलकुकड़े कांग्रेसियों और उमा भारती के चंद गरीब गुरबे कार्यकर्ताओं ने नरेंद्र मास्साब की एक सीडी जारी की थी। उस सीडी में नरेंद्र मास्साब को नोटों की गड्डियां लेते दिखाया गया था। सभी इस विषय-बिन्दु पर यकीन कर रहे थे। उनके य$कीन से हमें कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता।
प्रदेश के मुख्यमंत्री के बड़े भाई की भूमिका मैं इसलिए बांध रहा हूं, क्योंकि भोपाल पुलिस द्वारा रचित इनकी एक एब्सट्रेक्ट फिल्म की शूटिंग चल रही है। इनकी इस फिल्म का विषय वस्तु है 'चोरी या डकैती ? इस फिल्म
के बारे स्वयं नरेंद्र मास्साब का अंत:करण कहता है कि चूंकि यह फिल्म सच्ची घटना के आधार पर है, लिहाज़ा इसका विषय पूर्ण सच यानी डकैती पर होना चाहिए। जबकि शिवराज के शुभचिंतक और भोपाल पुलिस इस फिल्म की विषय वस्तु 'चोरी पर केंद्रीत करना चाहती है। फिल्म का मुहूर्त सच्ची घटना के आधार पर विगत 22 मार्च 2009 को हो गया था।
जब नरेंद्र मास्साब के भोपाल स्थित अलकापुरी के घर ग्रिल निकालकर उन्हें और उनके परिवारजनों को कैद करके अलमारी के ताले तोडक़र लाखों रुपए ले उडऩे की पहली पटकथा सामने आई। दूसरी पटकथा 20 लाख रुपए से ज्य़ादा की डकैती होने की आई। फिर शिवराज के मित्रों, साधना भाभी साब और पुलिस की गहन मंत्रणा के बाद यह कथा केवल चार लाख रुपए की चोरी पर आकर टिक गई। इस प्रायोजित असत्य कथा के कुछ 'कटु-सत्य तब सामने आए, जब दो अप्रैल को घटना को अंजाम देने वाले गिरोह का सरगना अपने आधा दजर्न साथियों के साथ उज्जैन में पकड़ा गया। अखबार मालिकों और सम्पादकों के हस्तिनापुर से बंधे कुछ दबे कुचलित शोषित पीडि़त क्राइम रिपोर्टरों की मानें तो आरोपियों के सरगना ने यह तुरंत स्वीकार किया है कि हमने नरेंद्र मास्साब के घर से दस लाख रुपए की लूट की थी। कहानी में 'ट्विस्ट है! पुलिस चार लाख रुपए की लूट करने वाले जिस आरोपी को ढूंढ रही थी, पकड़े जाने के बाद वह चोर या डकैत दस लाख रुपए लूटने की बात कह रहा है।
खांटी और ईमानदार पुलिसकर्मियों की ज़ुबानी उक्त राशि 5 अप्रैल तक 22 लाख रुपए तक पहुंच चुकी थी। 'नरेंद्र मास्साब-चोरी या डकैती शीर्षक की इस थ्रिलर मूवी की शूटिंग जारी है। कयासों का दौर-दौरा भी जारी है। अपने नंबर बढ़वाने के चक्कर में हमेशा झगडऩे वाले आईजी/एसपी अलग-अलग बयानबाज़ी कर रहे हैं। उक्त फिल्म में चोरी या डकैती कितने रुपयों की हुई है, यह तो स्वयं नरेंद्र मास्साब बता पाएंगे, लेकिन पुलिस पहली बार धर्मसंकट में होगी कि जितने की डकैती हुई नहीं, उसे उससे ज्य़ादा धन मिल गया। अगर यह सच है तो पुलिस को आधिकारिक रूप से नरेंद्र मास्साब को चार लाख और समायोजन के तहत दस या अठारह लाख रुपए देने होंगे।
मास्साब की भूमिका और कहानी के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि अगर बेचारे नरेंद्र मास्साब मुख्यमंत्री के भाई नहीं होते तो क्या होता? प्रदेश की करोड़ों करोड़ जनता को मप्र पुलिस के लिए सद्बुद्धि यज्ञ, गुरु बलवान करने के लिए पाठ, साहस के लिए बगलामुखी का जाप करवाना चाहिए। ताकि हमारी पुलिस हर चोरी, डकैती, हत्या, लूट और अन्य अपराधों की त$फ्तीश इसी तत्परता से करे। इससे जनता को राहत मिलेगी।
करोड़ों करोड़ देवी-देवताओं को साष्टांग प्रमाण करते हुए मेरी विनती है प्रदेश का हर मास्टर, हर गुरुजी नरेंद्र मास्साब की तरह सम्पन्न हो। प्रदेश भाजपा का हर कार्यकर्ता और उनके परिजन भी उतने सम्पन्न हों, जितने नरेंद्र मास्साब हैं। बस यह दुआ है कि नरेंद्र मास्साब के घर हुई चोरी या डकैती उनके घर न पड़े। जिस मुख्यमंत्री की ईमानदारी सहजता, सरलता और सा$फगोई के चर्चे राष्ट्रीय रंगमंच पर हो, उसके परिजनों की भ्रष्ट कथा अनंता हो, यह विरोधाभास नहीं है? इस देश के अपने ध्रुव सत्य हैं, जिन्हें नहीं जानोगे तो जीवन रोते हुए ही कटेगा। यह बात सर्वमान्य सी है कि पटवारी है तो रिश्वत लेकर ही का$गज़ देगा न। थानेदार या सिपाही गाली देगा ही। वे पीट दें तो बुरा मानना मूर्खता है। साला, जीजा पर सवारी करेगा ही। सत्ता होगी तो सत्ता की बुराई आएगी ही। खदान होगी तो अवैध उत्खनन होगा ही। चुनाव आएंगे तो चंदा होगा ही। आबकारी वाला पैसे मांगेगा ही। थाने में नोट लगेंगे ही। पेट है तो गैस बनेगी ही। दूल्हा है तो दहेज मांगेगा ही। ईमानदार है तो ट्रांसफर होगा ही। आटा है तो गीला होगा ही। ज्य़ादा धन होगा तो नोट गिनने की मशीन लगेगी ही। ये सार्वभौमिक अटल सत्य हैं। इसमें बेचारे नरेंद्र मास्साब का क्या दोष? वैसे भी समरथ को नहीं दोष गोंसाई।