पंद्रहवीं लोकसभा में चुनकर आई महिलाओं की संख्या पिछली चौदह लोकसभा चुनावों में जीतकर संसद पहुंची महिलाओं से ज्याद है। इसी वजह से महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों में एक सवाल बड़ी तेजी से गूंज रहा है - क्या इस बार पास हो जाएगा महिला आरक्षण बिल। आंकडे इसकी उम्मीद जगाते हैं लेकिन इस मामले में संसद में जिस तरह का रूख दिग्गज राजनेताओं ने दिखाया है उससे यह राह बहुत आसान भी दिखाई नहीं दती। इस बाबत क्या संभावनाएं हैं
और क्या आशंकाएं :- पंद्रहवीं लोकसभा की स्थिति महिलाओं के लिहाज से थोड़ी बदली हुई होगी, क्योंकि इस बार आजादी के बाद सबसे ज्याद 59 महिला सांसद होंगी। जो कुल सांसदों का 10.07 प्रतिशत हैं। जिसमें 17 महिला सांसद 40 साल से कम उम्र की हैं। ये सुकून की बात संसद में बढ़ी महिला सांसदों की तादाद से उस वर्ग के दर्द को बेहतर आवाज दी जा सकेगी, जिसे हमेशा नजर अंदाज किया जाता रहा है। जनता ने पहली बार संसद में पचास से अधिक महिला प्रतिनिधियों को चुनकर भेजा है। हालांकि ये संख्या 1995 से संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत तय करने के लिए जारी कोशिशों के अनुरूप अभी भी नहीं है। यानी की 19 सालों से यह संघर्ष जारी है।
मुश्किले कम होने की उम्मीद :- महिला आरक्षण विधेयक के प्रारूप में संसद के अंदर महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण की बात की जाती रही है लेकिन इसका विरोध हमेशा ही किया जाता रहा। संसद के भीतर भी कई बार पुरूषों की प्रधानता तब स्पष्ट रूप से दिखाई दी जब लालू पासवान और मुलायम जैसे नेताओं ने महिला आरक्षण का खुलकर विरोध किया। हो सकता है कि संसद में आने के बावजूद लालू और मुलायम की आवाज उनकी पार्टी के प्रदर्शन के कारण धीमी पड़ जाए। महिला आरक्षण बिल पास हो जाने का रास्ता सिर्फ इस एक वजह से आसान तो नहीं हो जाता लेकिन फिर भी थोड़ी सी ही सही, मुश्किलें कुछ कम तो होंगी ही।
बदलेगी राजनीति की तस्वीर :- महिला आरक्षण बिल महिलाओं के कल्याण के लिहाज से उठाए गए तमाम कदमों में से सबसे अहम हो सकता है। इसके जरिए महिलाओं की सत्ता में भागीदारी सुनिश्रित होगी। यह एक विडंबना ही रही है कि इस देश में महिलाओं से जुड़े तमाम मुद्दों पर पुरूषों ने ही खूब राजनीति की और जो फैसले लेने थे वे लिए। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि पुरूषों का दिमाग और सोच महिलाओं से कई मायने में अलग होती है, इसमें ईगो जैसे कारक सबसे बड़ी भूमिका का निर्वाह करते हैं। फिर बात राजनीति की हो तो और भी मुश्किलें हो जाती हैं और यह संभावना खत्म सी हो जाती है कि इस बारे में कोई न्यायसंगत फैसला हो पाएगा। पुरूषों का माइंडसेट ही ऐसा होता है कि वे महिलाओं के बारे में उस तरह से सोच ही नहीं पाते। महिला आरक्षण बिल पास हो जाने के बाद इस बात की उम्मीद ज्यादा है कि संसद में अपनी तादाद के बूते पर महिलाएं महिलाओं के विकास और कल्याण के लिए अपना मॉडल बना पाएंगी। इससे रानीति की दिशा और दशा दोनों में बदलाव आ सकता है।
दमदार उपस्थिति :- बीजेपी ने कांग्रेस के मुकाबले में कम महिला उम्मीदवार उतारी थी। फिर भी संसद में बीजेपी 13 महिला सांसद नजर आएंगी। सीपीएम के मजबूत गढ़ को ढ़हाने में लगी ममता बनर्जी की पार्टी से 5 महिला सांसद जीती हैं, मायावती की बसपा से 4 और जनता दल से दो महिला सांसद जीकर आई हैं। सोनिया गांधी के यूपीए अध्यक्ष के तौर पर इसका पैरोकार होना, बीजेपी की सुषमा स्वराज का सबसे मुखर आवाज बनना और वापंथियों में से वृंदा कारत का कमान संभालना महिला आरक्षण के बेहतर आसार थे। सोनिया गांधी के एक बार फिर सत्ता के केंद्र में हैं और सुषमा स्वराज भी मौजूद रहेंगीही। इनके अलावा मीनाक्षी नटराजन भी हैं जो एनएसयूआई की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं। उम्मीद की जारही है कि इन सबने मिलकर यदि जमकर मोर्चा संभाला तो बात बन जाएगी ऐसी उम्मीद की जा रही है।
और जवान हुई संसद :- इस बार संसद में पुरूषों के साथ - साथ जो महिलाएं चुनकर पहुंचीं हैं उनमें 40 से 60 साल की उम्र के सांसदों की संख्या सबसे ज्यादा है। 56.90 फीसदी महिला सांसद इसी उम्र के बीच हैं। हालांकि पिछली संसद के मुकाबले इस बार संसद तें युवा महिला सांसद ज्यादा चुनकर आयी हैं। पिछली लोकसभा में 40 साल से कम उम्र की महिला सांसदों का प्रतिशत 17 था, जो इस बार बढ़कर 29.23 हो गया है। संसद में महिला सांसदों और खासकर युवा महिला सांसदों की बढ़ती तादात निश्चित रूप से सुकून देने वाली है।
आ गई नई महिला ब्रिगेड :- लोकसभा में पुरानी कद्दावर महिला सांसदों के अलावा इस बार चुनकर आए नये चेहरों में प्रिया दत्त, श्रुति चौधरी, अनु टंडन, अगथा संगमा, विजयाशांति, हर सिमरन कौर, शताब्दी राय,मीनाक्षी नटराजन, मौसमी नूर और ज्योति मिर्धा आदि सभी पार्टियों से चुनकर आई सांसदों के कारण महिला आरक्षण बिल के पक्ष में माहौल बनने की संभावना है।
मतदाताओं ने दिखया उत्साह :- मतदाताओं ने सार्वजनिक जीवन में महिला की सहभागिता को बढ़ाने के लिए इस बार रानीतिक दलों से ज्यादा उदारता दिखाई है। ऊपरीतौर पर कांग्रेस, वामपंथी और बीजेपी संसद में महिला आरक्षण की पैरवी करती रही हैं, लेकिन जब टिकट में बंटवोर का वक आया तो महिला प्रत्याशियों की हिस्सेदारी तय करने में सब आनाकानी करने लगे। 33 प्रतिशत टिकट महिला प्रत्याशियों को बांटने की बात पर सब बंगले झांकने लगे। बेमानी तर्क दिया गया कि महिलाएं नहीं जीत पाएंगी और पार्टी का नुकसान हो जाएगा। इस तर्क का आधार राजनीति को सिर्फ दबगं और अपराधी तत्वों का धधा मानना रहा। इस तर्क से अच्छे और बेहतर लोगों के राजनीति में आने का रास्ता रूकता है। तैंतीस प्रतिशत ना सही फिर भी सबसे ज्यादा टिकट कांग्रेस ने महिलाओं को दिया। नतीजा सबके सामने है। सबसे ज्यादा १९ महिला सांसद कांग्रेस की ही जीतकर आई हैं। इसमें बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी, नाथुराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा और अब्दुल गनी खान की नातिन मौसम नूर भी शामिल हैं। तीनों ने पहली बार संसद का रास्ता देखा है।
1 Comments
नहीं हो पायेगा, जनाब! मुझे इन हालातों में बिल के पास होने की उम्मीद नहीं है.
ReplyDeleteहिंदी में प्रेरक कथाओं और संस्मरणों का एकमात्र ब्लौग http://hindizen.com ज़रूर देखें.