अलिखित संविधान में सर्वप्रथम अधिकार भ्रम में रहने का है। कोई व्यक्ति, समाज और व्यवस्था भ्रम में रहे तो उसका क्या किया जा सकता है? इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जो गत हुई है उसके लिए स्वयं शिवराज सिंह, उनकी लाड़ली लक्ष्मी योजना और लाड़ले सलाहकार जिमेदार हैं। साथ ही संगठन के बेसुध कथित कार्यकर्ता भी। शिवराज के सारे सलाहकारों और संगठन के कर्ताधर्ताओं ने शिव' को आत्ममुग्धता की ऐसी हवा भरी कि वे भ्रम' के उच्चस्तरीय शिखर पर बैठ गए और जनता की मूलभूत समस्याओं से वास्ता नहीं रखा। सीएम हाउस में उनके लाडले और पूरे प्रदेश में छाई लाड़ली लक्ष्मी योजना के भरोसे वे पूरे चुनावी समर में रहे। सीएम हाउस में बैठे भाट-चारण उन्हें भावी पीएम इन वेटिंग के रूप में देखने लगे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी उनके मुंहलगे नौकरशाहों ने डुबोया था। शिवराज स्व. कुशाभाऊ ठाकरे के खास शिष्य रहे हैं। उन्होंने कभी मोहमाया को अपने पास फटकने नहीं दिया। हमेशा निस्पृह भाव से रहे। चूंकि शिवराज उनके शिष्य हैं, लिहाजा उन्हें कुशाभाऊ के आदर्शों पर चलना चाहिए। वे सुंदरलाल पटवा के भी शागिर्द हैं। पटवा जी से भी उन्हें सीखना चाहिए कि नौकरशाही पर लगाम कैसे लगाएं और कैसे औकात में रखें। शिवराज सिंह अगर वाकई इस हार से सबक लेना चाहते हैं तो उन्हें कुछ बिंदुओं पर गौर करना पड़ेगा। इस बार के लोकसभा चुनावों में नौटंकी करने वाले नेताओं को जनता ने नकार दिया है। पिछले दो संपादकीय में यह लिखा जा चुका है कि मध्यप्रदेश के नौकरशाह शिवराज सिंह को जबूरा बनाकर नौटंकी करवा रहे हैं। पूरे प्रदेश की नौकरशाही और मंत्री भ्रष्टाचार की धूम मचाए हुए है और मुख्यमंत्री उनके इशारे पर नाच रहे हैं। जिसकी जो मर्जी हो रही है वह वैसा कर रहा है। सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बात करने वाले लोगों की कथनी और करनी में अंतर हो तो जनता उसे नकारती है। संगठन के कुलिनों में वैमनस्यता और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति भी शिव सरकार को नुकसान पहुंचा रही है। मंत्री कितने बेलगाम हो गये हैं कि उन्हें संगठन की चिंता नहीं है, और संगठन के उँचे औहदे पर बैठे लोग आत्म केन्द्रित होकर अपने लाभ शुभ के हिसाब से निर्णय ले रहे हैं। उधर चंद अफसरान शिव से मिसलीड कर रहे हैं। इन परिस्थितियों पर यह शेर मौजूं है- तुम बन गए इस मेले में तमाशबीन देखो तुहारी दुकान कोई और चलाता है।विधानसभा चुनाव से पूर्व इन्हीं चंद नौकरशाहों ने शिवराज सिंह से लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान योजना, किसानों की क़र्ज माफी तथा छठे वेतनमान की घोष्णाएं करवा दीं। अब घोष्णाएं तो हो गईं, सस्ती लोकप्रियता भी पा ली, शिवराज प्रदेश की जनता के काका, मामा, भाई, दादा सब हो गए, किन्तु इन घोष्णाओं के अमल के लिए धन कहां से आएगा? मूलभूत बुनियादी समस्याओं पर सरकार के पास कोई कारगर योजना नहीं है। पूरे प्रदेश में पानी को लेकर हा-हाकार मचा हुआ है। अब तक पूरे प्रदेश में पानी को लेकर हुए संघर्ष में 13 लोगों की जानें जा चुकी हैं। पूरे प्रदेश में भरी गर्मी में बिजली कटौती को लेकर हंगामा हो रहा है। शिवराज और उनके नौकरशाहों को इसकी चिंता क्यों नहीं सताती? फिर बातें होती हैं प्रदेश में औद्योगिकीकरण की। जब प्रदेश में मूलभूत सुविधाएं नहीं होंगी तो क्यों कोई औद्योगिक घराना प्रदेश में पूंजी निवेश करेगा। बिजली पर मचे हा-हाकार पर ही सभवतः साहित्यकार मनोज श्रीवास्तव के गीत की पंक्तियां प्रासंगिक हैं - अंधेरा हँसता है, अंधेरा डसता है। उजालों की कीमत चुका न पाए जिन्दगी भर, अंधेरा सस्ता है। गांव गरीब के लिए संघर्ष की बात करने वाले शिवराज सिंह को यह ज्ञात होना चाहिए कि प्रदेश का विकास नहीं विनाश' हो रहा है। अफसरानों, नेताओं, भाजपा कार्यकर्ताओं, ठेकेदारों और दलालों का ही विकास हो रहा है। मीडिया मैनेजमेंट, दलाल संपादकों के लाभ-शुभ से शिवराज जरूर अखबारों में सुर्खियां पा सकते हैं, लेकिन गरीब सर्वहारा जनता का मन नहीं जीत सकते। आज भी प्रदेश में 200 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जहां आजादी के बाद से आज तक बिजली नहीं पहुंची है। सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जिन्होंने कलेक्टर नाम की संस्था का नाम तक नहीं सुना है। प्रदेश के अधिकांश प्रमोटी कलेक्टर धन बटोरू हो गए हैं। हर जिले में अंडरवर्ल्ड की तर्ज पर कल्याणकारी योजनाओं में कमीशनखोरी हो रही है। राहुल गांधी ने जब इस कमीशनखोरी के मुद्दे को उठाया था तो शिवराज को उसे सहजता से स्वीकार करना था। शिव, तुम आसमां की बुलंदियों से जल्द लौट आना हमें तो जमीं के मसलों पर बात करनी है। शिवराज सरकार के नए नवेले मंत्रियों में अधिकांश लजाऊ ठीकरे' हैं, मंत्री बनने के बाद मीडिया में सर्वाधिक छाने के लिए तरह-तरह की घोषणाएं करने वाले। जल्दी से सब कुछ पाने की होड़ में लगे सर्वश्री गौरीशंकर बिसेन, कन्हैयालाल अग्रवाल, जगदीश देवड़ा, पारस जैन, देवी सिंह सैयाम, अर्चना चिटनीस और रंजना बघेल के क्षेत्र में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। क्यों? शिव मंत्रिमण्डल में ऐसे कई और लजाऊ ठीकरे हैं, जिनकी आर्थिक सेहत पिछले छह सालों में सुधरी है। होशंगाबाद में शिव के खासमखास रामपाल सिंह चुनाव हार गए। भाजपा नेतृत्व भले ही हार के दूसरे कारण गिनाए, लेकिन यहां की हार के पीछे रेत और लकड़ी माफिया की छवि बहुत बड़ा कारण रही। एक भाजपा विधायक जिसने अपने बच्ची की शादी के कार्ड में प्रेषक के रूप में शिवराज सिंह का नाम छपवाया था, वह होशंगाबाद के आसपास से अवैध रेत उत्खनन को लेकर कुख्यात है। इस विधायक पर जंगल की अवैध कटाई और सागौन बेचने के भी आरोप हैं। शिवराज और रामपाल सिंह के परिजनों पर भी इसी तरह के आरोप हैं। कांगे्रस ने इस बात को जनता में खूब प्रचारित किया, जिसका लाभ उसे मिला। प्रदेश के मुखिया के परिजन और मुंह लगे अवैध कार्यों में लिप्त रहेंगे और आतंक फैलायेंगे तो पूरे प्रदेश में क्या होगा? यही कारण है कि मध्यप्रदेश दलित अत्याचार में पूरे देश में नंबर दो पर, महिला अत्याचार में नंबर एक पर, बाल उत्पीड़न में नंबर एक पर तथा लचर कानून व्यवस्था में भी भारत में अव्वल है। शिवराज सिंह अगर वाकई में मध्यप्रदेश को स्वर्णिम बनाना चाहते हैं तो उन्हें नौकरशाहों, मंत्रियों और अपने परिजनों पर लगाम कसनी होगी। लालू यादव का सोफेस्टिकेटेट वर्जन' बनने की बजाय मनमोहन सिंह की कार्यप्रणाली को अपनाना होगा। मध्यप्रदेश की जमीं के मसलों को सुलझाना होगा। यह तभी सभव है जब वे मंत्रालय में बैठेंगे, विकास योजनाओं की मानीटरिंग करेंगे, भ्रष्टों का नाश करेंगे, मूलभूत समस्याओं को एजेण्डा में लेंगे और प्रमोद महाजनी संस्कृति की बौद्धिक अय्याशियां बंद करवाएंगे। नहीं तो...तुमसे पहले भी इक शख्स यहां ततनशीं था उसको भी खुदा होने का तुम जैसा यकीं था।
0 Comments