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सूचना के अधिकार से डरते है नौकरशाह

वस्तुतः जिनके भी हाथ में शक्ति है वे खुलेपन के विरूद्ध हैं । भ्रष्टाचार को दबाने-छिपाने के लिए गठजोड़ अवश्य सक्रिय है, लेकिन मैं यह नहीं मानता कि जो लोग खुलेपन के विरोधी हैं वे पूर्ण रूप से गठजोड़ का अंग बन गये हैं । दरअसल, नौकरशाही को लगता है कि हर किसी को प्रशासन से संबंधित जानकारियां देने से ब्लैकमेलबढ़ेगा । इस बात को लेकर नौकरशाही के मन में डर है । मेरा मानना है कि खुलापन से ब्लैकमेल बढ़ेगा नहीं, कम होगा । ऐसा इसलिए कि सूचना के अधिकार प्राप्त होने के बाद लोगों के पास दस्तावेज होंगे और वे उसी के आधार पर किसी अधिकारी के खिलाफ आरोप लगायेंगे । इसी तरह यह भी भ्रम hai कि नौकरशाही में कामकाज का बोझ बढ़ेगा ।
वस्तुतः सरकार के हर अधिकारी की अपने वरिष्ठ के प्रति जिम्मेदारी तो रहती ही हैं कनिष्ठ अपने कामकाज का ब्यौरा वरिष्ठ को देते हैं । अब उन्हें केवल इतना करना है कि इस ब्यौरे की एक प्रतिलिपि जनता को भी मिल जाये । मुझे नहीं लगता कि जनता को कामकाज का ब्यौरा देने से अधिकारियों पर कोई ज्यादा बोझ पड़ेगा । लोगों को नियमों और कानूनों की जानकारी न देना, प्रशासन से संबंधित सभी मसलों को गोपनीय रखना नौकरशाही की बुनियादी चरित्र है । नियम क्या है, प्रावधान क्या है, या अमुक विषय पर निर्णय लेने वाले लोग कौन थे, या अमुक विषय पर किन वजरों से निर्णय लिये गये, इन बातों को नौकरशाही गोपनीय रखना पसंद करती है । दरअसल, शासन या प्रशासन से संबंधिम मामलों को गोपनीय रखकर वह अपनी सीधी जवाबदेही से बच जाती है। अधिकांश नौकरशाहों को लगता है कि यदि वे पारदर्शिता और खुलापन बरतते हुए लोगों को नियमों की जानकारी देने लगेंगे तो अपने उस विवेकाधिकार से वंचित हो सकेते हैं, जिसके तहत मनमानी करने की उन्हें एक हद तक छूट मिली होती है ।

वस्तुतः नौकरशाही को अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने का सुख तभी मिलता है, जब उसे मनमानेपन का अधिकार प्राप्त हो । इसलिए मेरा मानना है कि शासन-प्रशासन में जितनी पारदर्शिता आएगी, नौकरशाह दुःखी होंगे जो मनमानेपन में विश्वास रखते हैं, लेकिन दूसरी ओर ऐसे नौकरशाह भी हैं, जो साफ-सुथरा और निष्पक्ष प्रशासन चाहते हैं और पारदर्शिता में विश्वास रखते हैं। दरअसल, नौकरशाहों में यह भावना अभी तक नहीं आ पायी है कि वे जनता के सेवक हैं । नौकरशाही को यह स्वीकार नहीं है कि जनता के प्रति उनकी कोई जवाहदेही हो । राजस्थान में ग्राम सेवक संघ ने खुलेआम कहा था कि हम लोग आय-व्यय का लेखा-जोखा अपने वरिष्ठों को देने को तैयार हैं लेकिन जाता को देने के पक्ष में नहीं हैं । मेरा मानना है कि जनता संप्रभु है, सर्वोच्च है । उसे सूचनाएँ देने में किसी तरह की आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जनता को इस प्रक्रिया में मेरी तरह भागीदार बनाना होगा । उसे समझाना पड़ेगा कि उसकी सक्रिय भागीदारी से भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है । स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन की मांग सरकार विरोधी गतिविधि नहीं है । यदि एक सरकारी अधिकारी सूचना के अधिकार के अभियान से जुड़ता है, तो यह कहीं से भी नाजायज नहीं है ।

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