
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री लाड़ली लक्ष्मी, जननी सुरक्षा और कन्यादान योजना के माध्यम से जनकल्याण करने के लाख दावे करें, किंतु महिला आयोग उनके दावों की कलई खोल रहा है। खास बात यह है कि इस आयोग ने करोड़ों रुपए तो फूंक डाले, किंतु लोगों को न्याय नहीं मिल सका और अब आयोग द्वारा किए गए खर्च का विवरण देने में आनाकानी की जा रही है। यहाँ यह तथ्य भी गौरतलब है कि आयोग की कथित सक्रियता के बावजूद अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता ही गया।
महिला आयोग में राजनीतिज्ञ :- मप्र राज्य महिला आयोग अधिनियम 1995 के अनुसार राज्य महिला आयोग का गठन किया गया। इस अधिनियम के अध्याय-2 में उल्लेख है कि आयोग की अध्यक्ष विख्यात महिला सामाजिक कार्यकर्ता होगी या कोई वृत्ति करने वाली ऐसी विख्यात महिला होगी, जो महिलाओं के हित के लिए प्रतिबद्ध होगीं, जिसे राज्य सरकार द्वारा नाम निर्देशित किया जाएगा। आयोग की मौजूदा अध्यक्ष कृष्णकांता तोमर हैं, जो न समाजसेवी हैं, न विख्यात महिला। उनकी योग्यता मात्र यह है कि वे भाजपा से जुड़ी हैं। इसी अध्याय की कंडिका तीन तथा चार में कहा गया है कि आयोग की सदस्य दो ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्र की दो विशेषज्ञ होंगी। आयोग की मौजूदा सदस्य कमला वाडिया, मनोरमा गौर, सुषमा जैन और अमिता चपरा उपरोक्त विशेषज्ञता नहीं रखती हैं तथा उनकी योग्यता सिर्फ भाजपा नेताओं के परिवार से जुड़ी होना ही है।
ढेर सारा अमला :- उपरोक्त अध्यक्ष, सदस्य के अलावा आयोग में 30 अधिकारी, कर्मचारी और भृत्य-चौकीदार हैं, जिन्हें हर माह 25 लाख 4776 रुपए वेतनमान दिया जाता है। आयोग को वर्ष 2005-06 में 77 लाख 30 हजार रुपए बजट आवंटित हुआ, जिसमें 72 लाख 92 हजार 237 रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2006-07 के बजट 93 लाख, 86 हजार में 88 लाख, 39 हजार 534 रुपए खर्च हुए। वर्ष 2007-08 में 1 करोड़ 13 लाख, 50,000 रुपए के बजट में से 86 लाख 12 हजार 261 रुपए खर्च हुए।
बजट के साथ अपराध भी बदे :- महिला आयोग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2005-06 में दहेज हत्या के 203, दहेज प्रताडऩा के 532, बलात्कार के 255, अपहरण के 69, हत्या के 82, आत्महत्या के 15, कार्यस्थल पर प्रताडऩा के 251, घरेलू अत्याचार के 512, संपत्ति विवाद के 250, भरण पोषण के 47, बच्चों से संबंधित अत्याचार के 14 और अन्य प्रकार के 1275 प्रकरण, यानी कुल 3,514 प्रकरण पंजीबद्ध किए गए। वर्ष 2006-07 में 261 दहेज हत्या, 793 दहेज प्रताडऩा, 404 बलात्कार, 236 अपहरण और 188 हत्या के प्रकरणों के साथ ही कुल 5978 प्रकरण दर्ज किए गए।
35 फीसदी निराकरण :- महिला आयोग को वर्ष 1998 से 2003 तक कुल 5860 प्रकरण प्राप्त हुए, जिनमें से मात्र 2105 प्रकरणों का ही निपटारा किया जा सका। शेष 3706 प्रकरण नस्तीबद्ध कर दिए गए। छह साल में आयोग को करोड़ों का बजट मिला और काम 35.92 फीसदी ही हुआ, जो उसकी कार्यक्षमता तथा उपयोगगिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
कार्य विवरण कार्यालय में :- आरटीआई एक्टिविस्ट सुश्री शेहला मसूद ने महिला आयोग में सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी कि आयोग की बैठकों का विवरण मय तारीख के उपलबध कराया जाए तो आयोग की ओर से दी गई सूची में बताया कि विवरण कार्यालय में उपलब्ध है। प्रश्न यह है कि जब प्रत्येक बैठक का कार्य विवरण रजिस्टर में दर्ज है तो उसका विवरण क्यों नहीं दिया जा रहा है? क्या इससे इस शंका को बल नहीं मिलता है कि आयोग में बैठकों के नाम पर फर्जीवाड़ा होता है और सरकारी बजट का दुरुपयोग किया जाता है? अपीलार्थी ने यह मामला राज्य सूचना आयोग में उठाया है।
अयोग्य कैसे दिलाएंगी न्याय :- राज्य शासन ने महिला थानों में महिला काउंसलर की भी नियुक्तियां की हैं, जिन्हें स्नातकोत्तर होने के साथ ही समाज कल्याण का डिप्लोमाधारक होना चाहिए तथा कम से कम दो वर्ष का अनुभव भी होना चाहिए, लेकिन राजधानी के थानों में एक भी महिला काउंसलर इन योग्यताओं पर खरी नहीं उतरती है। किसी भी महिला काउंसलर के पास सोशल वेलफेयर का डिप्लोमा नहीं है। कुछेक तो मात्र बीए पास हैं और काउंसलर बना दी गई हैं। यही वजह है कि इनके द्वारा गलत समझौते कराने के कारण दोबारा प्रकरण दर्ज किए गए। जब राजधानी की यह हालत है तो प्रदेश के सुदूर अंचलों की स्थिति का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। यही कारण है कि लोगों में कानून का भय नहीं है और इसी कारण महिलाओं पर अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं।
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