दो हजार आबादी का यह गांव ऐसा अनूठा गांव है, जहां चुनाव नहीं होते, जहां सरकारी योजनाओं से मिले धन में गांव के लोग अपना हिस्सा भी जोड़ते हैं, कहीं कूड़ा-कचरा कहीं नजर नहीं आता, जहां कोने-कोने को हरे-भरे गार्डन की शक्ल दी गई है, जहां से सरकारी सेवाओं में निकले अफसर-कर्मचारी बसने के लिए लौटकर आ रहे हैं ताकि अपने तजर्बे से गांव को और खूबसूरत बना सकें।नरसिंहपुर जिले के इस गांव का नाम है-बधुवार। करीब 30 साल पहले यहां लोगों ने अपने बूते गांव की तस्वीर बदलने की ठानी थी। आज बाहर से आने वाला हर कोई दांतों तले उंगली दबाता है। यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि आपातकाल के बाद गांव के युवाओं ने तीन किमी की सड़क की बुनियाद तैयार करने का संकल्प लिया और जब यह काम पूरा हुआ तो शासन ने पक्की सड़क बनवाने में देर नहीं की। यह एक शुरूआत थी। इसके बाद तो जनसहयोग की भावना हर गांववासी के दिल में समा गई। यह गांव सिर्फ सरकारी धन के भरोसे नहीं है। जिस योजना में जितना धन मिला उससे कहीं ज्यादा अपनी तरफ से मिलाया। पारिवारिक और सामाजिक समारोहों के लिए मानस भवन बनाने शासन से डेढ़ लाख मिले तो गांव वालों ने छह लाख का भवन बनाकर खड़ा कर दिया। हर घर में शौचालय हैं जो सीमेंट की सड़कों के नीचे से प्रवाहित भूमिगत ड्रेनेज से जुड़े हैं। स्थानीय नदी पर स्टापडेम बनाकर बेहद कम बारिश के बावजूद जलस्तर को उंचा बनाए रखा गया है। यह गांव इन खूबियों के चलते एक साल पहले निर्मल ग्राम घोषित हो चुका है और इससे आगे उज्जवल ग्राम के लिए प्रस्तावित है। इसके लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अफसरों की एक टीम मुआयना कर चुकी है। उप सरपंच ठाकुर सुरेंद्रसिंह निर्मल ग्राम के ब्रांड एंबेसडर भी हैं। वे कहते हैं कि यहां हुए हर काम में हर ग्रामवासी ने तन, मन और धन से हाथ बंटाया है। गांव में मद्यपान निषेध है, यहां कभी चुनाव नहीं होते और बुजुर्गो के इस आदेश का पालन सब करते हैं कि योग्य व्यक्ति को मनोनीत किया जाए। विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरियों में गए कई अधिकारी-कर्मचारी भी सेवानिवृत्ति के बाद गांव आकर बसे हैं।भविष्य के सपने- गांववाले इतना कुछ करके संतुष्ट होकर बैठ नहीं गए हैं। वे बेहतरी के इस सिलसिले को जीवनर्पयत जारी रखना चाहते हैं ताकि दूसरों के लिए मिसाल बन सकें। भविष्य की योजनाओं में दसवीं तक स्कूल के करीब चार सौ विद्यार्थियों के इनडोर खेल के लिए एक हॉल, एक खुले मिनी स्टेडियम और जलसंवद्र्घन के लिए धमनी नदी के निकट एक तालाब का निर्माण शामिल है।यह इतना प्यारा गांव है कि शहर भी कुछ नहीं लगते। अपने सेवाकाल में मैंने ऐसा दूसरा गांव नहीं देखा। गांव के हर नागरिक ने इसकी सुंदरता बढ़ाने में योगदान दिया है। सबको सीखने के लिए यहां बहुत कुछ है।जिला पंचायत, नरसिंहपुर हमने तय किया था कि सेवानिवृत्ति के बाद गांव लौटेंगे। मैं 40 साल की शासकीय सेवा के बाद यहां आकर बस गया। गांव की हर गली और घर की हर दीवार बोलती है कि हम क्या कर रहे हैं।
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bahut achihaipost kuchh din pehle akhbaar me bhi pada tha
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