सतना से बिटिया वीणा सिंह को टिकट नहीं मिलने के बाद अब यह तो तय हो गया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेसी राजनीती के भीष्म पितामह और चाणक्य कहे जाने वाले दाऊ साहब यानी कुंवर अर्जुन सिंह कि राजनितिक विरासत का उत्तराधिकारी अजय सिंह को ही माना जा सकता हैं यह भी तय हो गया कि लम्बे समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री कि कमान सम्भालने वाले धुरंधर नेता अर्जुन सिंह ने अब चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया हैं इस फैसले से माना जा सकता हैं कि प्रदेश की सक्रिय राजनीति से अर्जुन युग समाप्त हो चुका हैं चुनावी राजनीति से अर्जुन सिंह का विश्राम एक ऐसे राजनेता की सक्रियता पर विराम लगता हैं , जिसने मध्यप्रदेश की राजनीति को असाधारण तौर पर प्रभावित किया यदि यूँ कहा जाये कि मध्यप्रदेश का राजनितिक इतिहास अर्जुन युग के पहले और बाद के काल खंडो में विभक्त है तो गलत नहीं होगा सिंह ने प्रदेश के राजनितिक धरातल पर विशिष्ठ छाप तो अपनी सक्रियता से छोडी ही , राष्ट्रीय रंग मंच पर भी कद्दावर नेता के रूप में धाक जमाई अक्सर अपनी कार्य शैली के चलते विवादों में ही वे कई बार घिरे ,पर राजनीति के इस चतुर खिलाडी ने हर बार न केवल अपना बखूबी बचाव किया बल्कि अपने कद को भी बढाया अर्जुन सिंह के राजनितिक प्रतिद्वंदियों ने भी कभी इस बात को मानने में गुरेज नहीं किया कि वे असाधारण प्रतिभा के धनि कुशल राजनेता हैं जिनका सोच , वैचारिक द्रढ़ता , संस्कृतिक अभिरुचि और रणनीतिक कौशल उन्हें किसी भी अन्य राजनेता के मुकाबले काफी ऊपर खडा करता हैं बात मध्यप्रदेश कि हो या छत्तीसगढ़ की दोनों राज्यों के ज्यादातर कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह के शामियाने में ही पैदा हुए हैं चाहे उनमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बात हो या अजित जोगी की पर अब सवाल उठने लगे हैं की जिस फसल को कुंवर साहब ने बोया था , क्या अजय सिंह उसे सहेज पाएंगे ? विरासत में तो अजय सिंह को पंकज संघवी इंदौर ,सुशिल तिवारी सागर , भगवन सिंह ग्वालियर , रमेश चौधरी जबलपुर , प्रेमनारायण मिश्र सागर , बुंदेलखंड में यादवेन्द्र सिंह , मानवेन्द्र सिंह , शंकर प्रताप सिंह जैसे कई दिज्गाज समर्थक मिले थे लेकिन अब पूरी पौध खत्म हो गई यूँ तो पुरे मध्यप्रदेश की राजनीति में ज्यादातर कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह शामियाने में ही पैदा हुए थे , लेकिन जब वे तिवारी कांग्रेस में गए तो उनके सिपहसलार दिग्विजय सिंह ने पूरी धरोहर अपने पास शिफ्ट कर ली हजारी लाल रघुवाशी , हरवंश सिंह , सुभाष यादव , राधाकृष्ण मालवीय जैसे नेताओं को भी कालांतर में छायादार वृक्ष नहीं मिला तो उन्होंने दिग्विजय को वटवृक्ष मान कर करवट बदल ली अर्जुन सिंह की धरोहर में चुनिन्दा लोग ही बचे हैं उनमे डाँक्टर महेंद्र सिंह चौंहान , लखन घनघोरिया , राजनारायण पूरनी जैसे लोग हैं दरसल ढलती उम्र और अस्वस्थ के चलते अर्जुन सिंह ने भले ही चुनावी राजनीति से अब सन्यास लिया हैं लेकिन नजर दौडाए तो नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर बनाई तिवारी कांग्रेस के साथ ही विन्ध्य के इस राजनेता का पतन काल शुरू हो गया था अर्जुन सिंह विवादस्पद बयानों , शिक्षा के भगवाकारण के खिलाफ कम्युनिस्ट समर्थक बयानों के चलते हमेशा विवादों में रहे लिहाजा अब माना जा रहा हैं की सक्रीय राजनीति से अब अर्जुन युग की समाप्ति हो गई है हालाँकि राजनितिक विश्लेषकों की माने तो वे अजय सिंह को पूर्ण उत्तराधिकारी नहीं मानते हैं इसके लिए वे तर्क भी वाजिब देते हैं वे कहते हैं कि अर्जुन सिंह ऐसे वटवृक्ष हैं , जिनकी टहनिया अविभाज्य म.प्र के हर गाँव में थी लेकिन संरक्षण नहीं मिलने के चलते वे अलग-अलग राजनितिक घरानों में शामिल हों गई कांग्रेस की राजनीति में सिफर मोतीलाल वोरा या श्यामाचरण शुक्ल को छोड़ दिया जाए तो रविशंकर शुक्ल ,कुंजीलाल दुबे जैसे ज्यादातर नेता औसत (मीडियोकर) किस्म के राजनेता रहे हैं लेकिन करिश्माई राजनेताओं पर गौर किया जाए तो डीपी मिश्रा के बाद सिर्फ अर्जुन सिंह ही ऐसे राजनेता रहे जिन्होंने प्रशासन तंत्र में इम्पलीमेंटेशन पर सर्वाधिक सख्ती बरती मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते अर्जुन सिंह की कार्यप्रणाली वर्षों बाद भी आज लोगो के जहन में ताजा हैं अंग्रेजी में जिसे कैरट एंड स्टिक पॉलिसी यानी पुरस्कार और दंड निति कहते हैं , वह व्यावहारिक तौर पर राजनीति में इस्तेमाल कर कैसे आगे बढा जाता हैं , यह उन्होंने बखूबी दिखाया था चाहे अनुशासन की बात हो , अर्जुन सिंह का कार्यकाल सभी याद करते हैंचाहे झुग्गीवासियों को उपकृत करने का मामला हो या भाड़े पर रिक्शा चलने वाले गरीबों को रिक्शा मालिक बनाने का फैसला हो अथवा पिछड़ा वर्ग के छात्रों को छात्रवृति देने का मामला हों , कमजोर वर्ग के हित के लिए ज्यादातर फैसलों की शुरुवात उन्हीं के दौर में हुई वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र माथुर ने लिखा था , "जिसके सर पर कील ठोकी जाए और वो स्क्रू बनकर कर उभरे " उसका नाम हैं अर्जुन सिंह " राजनितिक विश्लेषक ऐसे चाणक्य के उत्तराधिकारी के प्रश्न पर भी एकमत नहीं हैं वे तो अर्जुन का उत्तराधिकारी दिग्विजय को ही मान रहे हैं , जिन्होंने उनकी पूरी फसल काटी
2 Comments
फोटो में नेता जी रो रहे हैं ?
ReplyDeleteपूरी ज़िन्दगी दूसरों को रुलाकर भी ?
सुंदर आलेख के लिए साधुवाद।
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