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कहीं तस्वीरों में ना रह जाएं वनराज

एक अनुमान के मुताबिक सौ साल पहले भारत में बाघों की संख्या 40,000 थी। राष्ट्रीय बाघसंरक्षाण ऑथारिटी के अनुसार सनृ 2002 के सर्वेक्षण में जहां बाघों की संख्या 3500 आंकी गईथी, वहीं 2008 में यह घटकर 1411 हो गई है। यानि कि अब भारत में मात्र 1411 बाघ बचे हैं।बताया जाता है कि पिछले पांच वषोर्ं में बाघों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। वन्य जीवों के लिए काम करने वालों का मानना है कि साल 2025 तक बाघों के विलुप्त हो जाने का खतरा है। बाघों की कुल आबादी के 40 फीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। भारत के 17 प्रदेशोंमें बाघों के 23 संरक्षित क्षेत्र हैं।


एशिया महाद्वीप में बाघों की संख्या में लगातार आने वाली कमी का मुख्य कारण उनके अंगों का गैरकानूनी व्यापार है। शिकारी भारत में बाघों को मार कर उनके अंगों को नेपाल और फिर नेपाल के रास्ते चीन के बाजारों तक पहुंचाते हैं, जहां उनकी बिक्री की जाती है। चीन में बाघों की खाल और हडियों की भारी मांग हैं और उसे नौ सौ फीसदी मुनाफे तक पर बेचा जाता है। इधर उतर प्रदेश पुलिस भी इस बात को मानती है कि आये दिन उनका पाला शिकारियों से पड़ता है। अभी हाल ही में वहां की पुलिस ने प्रतापगढ़ जिले से बाघ और चीते की 20 खालें बरामद की थी। पुलिस ने इस मामले में दो लोगों को गिरक्तार भी किया था। उनका कहना था कि वे खालों को नेपाल ले कर जा रहे थे। बाघों की घटती संख्या के पीछे अवैध शिकार और घटते जंगलों को सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में संरक्षण के उपायों के बावजूद बाघों की संख्या लगातार घट रही है।



क्या कहते हैं पर्यावरणविद :- सुनीता नारायणन ने बाघों के संरक्षण के लिए तीन उपाय सुझाए हैं। बाघों के संरक्षण के लिए जंगलों में सुरक्षा के ठोस इंतजाम किए जाएं, वन्य जीव अपराध ब्यूरो का गठन किया जाए और बाघों के संक्षरण से स्थानीय लोगों को जोड़ा जाए।बाघों की घटती संख्या के मद्देनजर टाइगर टास्क फोर्स ने बाघों के संरक्षण के लिए पुख्ता सुरक्षा उपाय और वन्य जीव अपराध ब्यूरो के गठन की सिफारिश की थी। सुनीता नारायणन कहती हैं, बाघों की गिनती के वास्तविक आंकड़े सामने आ जाएं तो हमें रूला देंगे, लेकिन यह जानना जरूरी है कि कहां और कितने बाघ हैं ताकि उन्हें बचाया जा सके। बाघों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई फिल्में बना चुके वन्यजीव संरक्षक वाल्मिकी थापर कहते हैं कि वन और पर्यावरण मंत्रालय बहुत सुस्ती से काम कर रहा है। वाइल्ड लाइफ क्राइम ब्यूरो की फाइल वर्षों से मंत्रालयों के चक्कर काट रही है। इसी तरह प्रोजेक्ट टाइगर को कानूनी हैसियत देने संबंधी प्रस्ताव भी सरकारी महकमों में धूल चाट रहा है। वाल्मिकी थापर एक गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिलाते हैं। वे बताते हैं कि 18 वर्षों से फॉरेस्ट गार्ड के लगभग 25 हजार पद खाली पड़े हैं। एक वनरक्षक की औसत उम्र अब 50 वर्ष से ऊपर है और वे एक जगह बैठे उंघते रहते हैं। यह बहुत खतरनाक स्थिति है इसलिए जल्द से जल्द स्थानीय नौजवानों को भर्ती किया जाना चाहिए। यूरोपीय संसद में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व कर चुकीं नीना गिल कहती हैं कि भारत अकेले बाघों की घटती संख्या जैसे मसले से नहीं निपटसकता और वक्त आ गया है कि बाघों को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाए।



कहां कितनी संख्या :- मध्यप्रदेश में इनकी संख्या सबसे अधिक 290 है। उतराखंड में 178, उतर प्रदेश में 109 और बिहार में 10 बाघ होने का अनुमान है। इसी तरह आंध्र प्रदेश में 95, महाराष्ट्र में 95, उड़ीसा में 45 और राजस्थान में 32 बाघ होने का आकलन किया गया है। भारत में बाघों की घटती संख्या के बारे में लगातार दी जा रही चेतावनियों के बावजूद एक ताजा रिपोर्ट के अनूसार बाघों की संख्या जैसी आशंका थी उससे कहीं अधिक कम हुई है। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में बाघों की संख्या में अपेक्षा से 65 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। जारी रिपोर्ट के अनुसार 2002 में मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 710 थी जबकि इस समय यह संख्या 290 है। इसी तरह महाराष्ट्र में पिछले पांच वर्षों में बाघों की संख्या 238 से घटकर 95 रह गई है और राजस्थान में 58 से 32 हो गई है। सिर्फ जिम कार्बेट नेशनल पार्क में ही बाघों की संख्या बेहतर देखी गई है जहां अभी भी 500 वर्ग किलोमीटर में 112 बाघ हैं।



एशिया में सिर्फ अब पांच से सात हजार बाघ :- बाघों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए दुनिया भर के विशेषज्ञों ने नेपाल की राजधानी काठमांडू में सम्मेलन किया। सम्मेलन में इस बात पर चिंता व्यक की गई कि बाघों की कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। इस सम्मेलन का आयोजन विश्व वन्यजीव कोष के सौजन्य से किया गया था। बैठक के दौरान बाघों के खाल और सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस बात पर विशेष चिंता जाहिर की कि दुनिया भर में बाघों की आठों प्रजातियां जंगलों पर बढ रहे दबाव और शिकार के कारण संकट में हैं। पूरे एशिया में अब पांच से सात हजार बाघ ही बचे हैं। इस सम्मेलन में भारत, रूप इंडोनेशिया और नेपाल समेत 12 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।



चीन का मामला :- बाघों के संरक्षण पर चीन का रूख विवादास्पद रहा है। वर्ष 1993 में चीन ने बाघों की हडियों के कारोबार पर रोक लंगा दी थी लेकिन अब वहां की सरकार पर यह प्रतिबंध हटाने का दबाव बढ रहा है। इसके पक्ष में एक तर्क ये है कि बाघों की हडियां इलाज के काम आती है। नेपाल सम्मेलन में चीन द्वारा बाघ की हडियों और चमड़ी पर से प्रतिबंध हटाने की मांग उठी, लेकिन बाघों की कम होती संख्या को देखते हुए अन्य एशियाई देश प्रतिबंध बरकरार रखना चाहते हैं।



बनती है शराब :- बताया जाता है कि चीन में बनने वाली राइस वाइन में बाघ की खाल को भिगोया जाता है और उससे तथाकथित टाइगर बोन वाइन बनाई जाती है। वाइन पीने वाले लोगों का मानना है कि इससे उनमें ताकत आती हैं। बाघों की खाल का चीन बहुत बड़ा बाजार है। भारतीय बाघ की खालें चीन के बाजारों में खुलेआम बिकती हैं। वन्य जीव संरक्षण से जुड़ी प्रमुख संस्थाओं का कहना है कि भारत और चीन दोनों देशों में बाघ एक संक्षरित प्राणी है, लेकिन इसके बावजूद अवैध कारोबार जारी है। संयुक्त राष्ट्र की संधि पर भारत और चीन दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और दोनों देशों में बाघ को मारने पर कानूनी प्रतिबंध है। वन्य जीव संरक्षण की दिशा में सक्रिय संस्थाओं का कहना है कि चीन में जितनी भी खालें बिकती पाई गई हैं वे सब की सब भारत के बाघों की हैं। अगर भारत और चीन इस मामले पर एकजुट नहीं हुए तो बाघों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।



बाघ मारने पर यहां मनता है उत्सव :- पुर्वोतर भारत के मेघालय प्रांत में एक गांव ऐसा है, जहां मनाए जाने वाले उत्सव से वहां के बाघ भी खौफ खाते हैं। जनजातीय आबादी वाले मेघालय की जयंतिया पहाड़ियों पर बांग्लादेश सीमा के पास स्थित नोंग्तालांग नामक गांव में रोंगख्ली उत्सव तब मनाया जाता है जब ग्रामीण किसी बाघ या तेंदुए को मारने में कामयाब होते हैं। जयंतिया भाषा में रोंग का मतलब होता है बाघ और ख्ली उत्सव को कहते हैं। गांव की पुरानी परंपरा के हिस्से के रूप में मनाए जाने वाले इस उत्सव का अंत बाघ के भुने हुए मांस के साथ सामुदायिक भोज से होता है।



बाघों के मरने की घटनाएं एक नजर में :- वर्ष 1994 में 95, वर्ष 1995 में 121, वर्ष 1996 में 52, वर्ष 1997 में 88, वर्ष 1998 में 44, वर्ष 1999 में 81, वर्ष 2000 में 53, वर्ष 2001 में 72, वर्ष 2002 में 43, वर्ष 2003 में 35, वर्ष 2004 में 34,वर्ष 2005 में 43, वर्ष 2006 में 37, वर्ष 2007 में 27, वर्ष 2008 में 28, स्त्रोत :- डब्ल्यूपीएसआई



इस साल की कुछ घटनाएं :- मध्यप्रदेश के नेशनल पार्क कान्हा में इस साल के शुरूआती दो महीन में तीन बाघों मौत हो चुकी है। भोपाल के वन विहार में 22 फरवरी को एक बाघ की मौत हो गई। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में एक बाघ मृत पाया गया। उतर प्रदेश के पीलीभीत से निकले बाघ की मौत फैजाबाद में 24 फरवरी को हो गई। 18 मार्च को कार्बेट राष्ट्रीय उधान में एक बाघ को मृत पाया गया यह एक ही हफते के भीतर दूसरी ऐसी घटना थी।

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1 Comments

  1. जानकारियों से भरा पोस्ट और बहुत अच्छा विश्लेषण। बाघ ख्तम हो जाए तो यह देश सचमुच बहुत निर्धन हो जाएगा और हमारे जंगलों की शान भी जाती रहेगी।

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